उस राज़ को क्या राज़ कहें,
जो चौराहों पे सरे आम हो?
जो 'राज़' हमारे पहलू में है,
वो हर गलीमे हो,उसे क्या कहें?
यही के,जो ख़ुद को 'ख़ास' कहें,
वो बाज़ारे आम से दूर रहें?
छवी ,जो उनकी हमारी आँखों में है,
वही रखें,उसे क्यों गिराएँ हैं?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
11 comments:
शमा जी,
खूबसूरत अंदाज है कहना कि " राज को राज रहने दो"।
अच्छी लगी रचना।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
एक सुन्दर भाव की सुन्दर प्रस्तुति
सुन्दर काव्य सृजन!
SUNDER ABHIVYAKTI.
वाह! बहुत सुन्दर...राज आखिर राज ही रहेगा क्या? इसे भी बयान कर ही दो! जारी रहें. आपकी रचनाएं मेरे हिसाब से मुक़म्मल होतीं हैं.
---
आप हैं उल्टा तीर के लेखक / लेखिका? और भी बहुत कुछ...विजिट करें अभी- [उल्टा तीर] please visit: ultateer.blogspot.com/
haqeeqat hai sab kuch jo likha hai
majid
उस राज़ को क्या राज़ कहें,
जो चौराहों पे सरे आम हो?
.....
दर्द और मासूमियत दोनों ही है आपके लेखन में.......
बहुत सुन्दर!!!!!!
बहुत ही सुन्दर भाव.
bahu khoob
पहलू में कोई 'राज़ ' हो बाज़ार तलक पहुंचे
या तुममे कमी होगी या 'राज़' नहीं होगा
Post a Comment