Saturday, January 30, 2010

मुगाल्ते

शमा जी  का अनुरोध सिर आंखों पर 
मुगाल्ते"
' कविता' पर भी 
प्रस्तुत है!

मै नहीं मेरा अक्स होगा,
जिस्म नही कोई शक्स होगा.

ख्वाहिशें बेकार की है,
पानी पे उभरा अक्स होगा.

ज़िन्दगी अब और क्या हो,
आंखों में तेरा नक्श होगा.

गल्तियां मेरी हज़ारों,
तू ही खता बख्श होगा.


Friday, January 29, 2010

Jange aazaadee

ये कविता उस महात्मा और उसकी और हमारी माँ को समर्पित है .....जवाब उन लोगों को है, जो आज होती/दिखती हर बुराई के लिए गांधी को ज़िम्मेदार ठहरातें हैं...ये तो हर शहीद पे इल्ज़ामे बेवफ़ाई है...चाहे, गांधी हो, भगत सिंग हो या करकरे, सालसकर, अशोक काम्टे ....Jange aazaadee

ना लूटो , अस्मत इसकी,
ये है धरती माँ मेरी,
मै संतान इसकी,
क्यों है ये रोती?
सोचा कभी?
ना लूटो...

मत कहो इसे गंदी,
पलकोंसे ना सही,
हाथों से बुहारा कभी?
थूकने वालों को इसपे,
ललकारा कभी?
ना लूटो...

बस रहे हैं यहाँ कपूत ही,
तुम यहाँ पैदा हुए नही?
जो बोया गया माँ के गर्भमे
फसल वही उगी...
नस्ल वही पैदा हुई,
ना लूटो...

दिखाओ करतब कोई,
खाओ सीने पे गोली,
जैसे सीनेपे इंसानी,
गोडसेने गांधीपे चलायी,
कीमत ईमानकी चुकवायी,...
ना लूटो...

कहलाया ऐसेही नही,
साबरमती का संत कोई,
चिता जब उसकी जली,
कायनात ऐसेही नही रोई,
लडो फिरसे जंगे आज़ादी,
ना लूटो...

ख़तावार और वो भी गांधी?
तुम काबिले मुंसिफी नही,
झाँको इस ओर सलाखों की
बंद हुआ जो पीछे इनके,
वो हर इंसां गुनाहगार नही,
ना लूटो...

ये बात इन्साफ को मंज़ूर नही,
दिखलाओ उम्मीदे रौशनी,
महात्मा जगतने कहा जिसे,
वैसा फिर हुआ कोई?
कोई नही, कोई नही !!
ना लूटो...

Monday, January 25, 2010

खता किसने की?

खता किसने की?
इलज़ाम किसपे लगे?
सज़ा किसको मिली?
गडे मुर्दोंको गडाही छोडो,
लोगों, थोडा तो आगे बढो !
छोडो, शिकवोंको पीछे छोडो,
लोगों , आगे बढो, आगे बढो !

क्या मर गए सब इन्सां ?
बच गए सिर्फ़ हिंदू या मुसलमाँ ?
किसने हमें तकसीम किया?
किसने हमें गुमराह किया?
आओ, इसी वक़्त मिटाओ,
दूरियाँ और ना बढाओ !
चलो हाथ मिलाओ,
आगे बढो, लोगों , आगे बढो !

सब मिलके नयी दुनिया
फिर एकबार बसाओ !
प्यारा-सा हिन्दोस्ताँ
यारों दोबारा बनाओ !
सर मेरा हाज़िर हो ,
झेलने उट्ठे खंजरको,
वतन पे आँच क्यों हो?
बढो, लोगों आगे बढो!

हमारी अर्थीभी जब उठे,
कहनेवाले ये न कहें,
ये हिंदू बिदा ले रहा,
इधर देखो, इधर देखो
ना कहें मुसलमाँ
जा रहा, कोई इधर देखो,
ज़रा इधर देखो,
लोगों, आगे बढो, आगे बढो !

हरसूँ एकही आवाज़ हो
एकही आवाज़मे कहो,
एक इन्सां जा रहा, देखो,
गीता पढो, या न पढो,
कोई फ़र्क नही, फ़ातेहा भी ,
पढो, या ना पढो,
लोगों, आगे बढो,

वंदे मातरम की आवाज़को
इसतरहा बुलंद करो
के मुर्दाभी सुन सके,
मय्यत मे सुकूँ पा सके!
बेहराभी सुन सके,
तुम इस तरहाँ गाओ
आगे बढो, लोगों आगे बढो!

कोई रहे ना रहे,
पर ये गीत अमर रहे,
भारत सलामत रहे
भारती सलामत रहें,
मेरी साँसें लेलो,
पर दुआ करो,
मेरी दुआ क़ुबूल हो,
इसलिए दुआ करो !
तुम ऐसा कुछ करो,
लोगों आगे बढो, आगे बढो!!

Wednesday, January 20, 2010

माँ!

मिलेगी कोई गोद यूँ,
जहाँ सर रख लूँ?
माँ! मै थक गयी हूँ!
कहाँ सर रख दूँ?

तीनो जहाँ ना चाहूँ..
रहूँ, तो रहूँ,
बन भिकारन रहूँ...
तेरीही गोद चाहूँ...

ना छुडाना हाथ यूँ,
तुझबिन क्या करुँ?
अभी एक क़दम भी
चल ना पायी हूँ !

दर बदर भटकी है तू,
मै खूब जानती हूँ,
तेरी भी खोयी राहेँ,
पर मेरी तो रहनुमा तू!
(maa pe likhe aalekh me yah rachana likhi thee)

दो क्षणिकाएँ..

१)बहारों के लिए...

बहारों के लिए आँखे तरस गयीं,
खिज़ा है कि, जाती नही...
दिल करे दुआए रौशनी,
रात है कि ढलती नही...

२)शाख से बिछडा...

शाखसे बिछडा पत्ता हूँ कोई,
सुना हवा उड़ा ले गयी,
खोके मुझे क्या रोई डाली?
मुसाफिर बता, क्या वो रोई?

Monday, January 11, 2010

२ क्षणिकाएं...

१) मीलों फासले..

मीलों तय किए फासले
दिन में पैरों ने हमारे,
शाम हुई तो देखा,
हम वहीँ खड़े थे,
वो मील का पत्थर,
सना हुआ धूलसे,
छुपा था चन्द झाडियों में,
जहाँसे भोर भये,
हम चल पड़े थे,
हम क्यों थक गए?
क्या हुआ जो,
क़दम रुक गए?

२) खुशी या दर्द?

गर मै हूँ खुशी किसीकी,
मत छीनना मुझे कि,
छीन के मिल सकती नही...

हूँ मै दर्द तुम्हारा,
मत लौटाना मुझे,कि,
मै लौट सकती नही ...

दर्द का पता!

कल रात मेरी जीवन साथी संजीदा हो गईं,
मेरी कविताएं पढते हुये,


उसने पूछा,


क्या सच में! 


आप दर्द को इतनी शिद्द्त से महसूस करते हैं? 
या सिर्फ़ फ़लसफ़े के लिये मुद्दे चुन लेतें हैं!  


दर्द की झलक जो आपकी बातों में है,
वो आई कहां से?


मैने भी खूबसूरती से टालते हुये कहा,


दर्द खजाने हैं,इन्हें छुपा कर रखता हूं,
कभी दिल में,कभी दिल की गहराईओं में


खजानों का पता गर सब को बताता,
तो अब तक कब का लुट गया होता!


मेरे किसी दोस्त ने कभी बहुत ही सही कहा था!


’ये फ़कीरी लाख नियामत है, संभाल वरना,
इसे भी लूट के ले जायेंगें ज़माने वाले!’          

Friday, January 8, 2010

बेवफ़ाई का सच!



कल मुझे इक खबर ने दुखी कर दिया!


मेरे  दोस्त का तलाक हो गया!


आम बात(खबर) है ये आज कल,


पर मेरे दुखी होने की वजह और थी,


दोनों ’तलाक शुदा’ व्यक्ति मेरे दोस्त रहे थे!


एक (उनकी) शादी से पहले और एक शादी के बाद! 




हांलाकि मैं तलाक की वजह नहीं था!




पर अफ़सोस कि बात ये के


काश उन दोनों मे से ,


कोई एक तो ऐसा होता,




जो मोहब्बत की कद्र कभी तो समझता!
शादी से पहले या शादी के बाद !

चिड़िया ग़र चुग जाये खेत....

सुना था मेरे बड़ों से,
चिड़िया खेत चुग जाये,
फ़ायदा नही रोनेसे!
ये कहावत चली आयी
गुज़रती हुई सदियों से,
ना भाषाका भेद
ना किसी देशकाही
खेत बोए गए,
पँछी चुगते गए,
लोग रोते रहे
इतिहास गवाह है
सिलसिला थमा नही
चलताही रहा
चलताही रहा !

Monday, January 4, 2010

खिलने वाली थी...

खिलनेवाली थी, नाज़ुक सी
डालीपे नन्हीसी कली...!
सोंचा डालीने,ये कल होगी
अधखिली,परसों फूल बनेगी..!
जब इसपे शबनम गिरेगी,
किरण मे सुनहरी सुबह की
ये कितनी प्यारी लगेगी!
नज़र लगी चमन के माली की,
सुबह से पहले चुन ली गयी..
खोके कोमल कलीको अपनी
सूख गयी वो हरी डाली....

( bhroon hatya ko maddenazar rakhte hue ye rachna likhee thee..)