Wednesday, November 30, 2011

दुल्हनिया...!


ना,ना,न छूना घूंघटा,
सहमी सिमटी है दुल्हनिया,
अभी छलके हैं इस के नैना,
यादों में है बाबुल अपना!

आँखों से कजरा बह गया,
बालों में गजरा मुरझाया,
हैं हिनाभरी हथेलियाँ,
याद आ रही हैं सहेलियाँ...

दादी औ माँ में उलझा है ज़ेहन,
उसमे बसा है नैहरका आँगन,
धूप में बरसती सावनी फुहार,
फूल बरसाता हारसिंगार...

गीली मिट्टी पे मोलश्री के फूल,
नीम के तिनकों में पिरोये हार,
मेलों के तोहफे,बहनका दुलार,
अभी यही है,इसका सिंगार!

Monday, November 14, 2011


शायद इसी लिये!




तेरे थरथराते कांपते होठों पर,
मैंने कई बार चाहा कि,
अपनी नम आंखे,
रख दूं!


पर,





  


तभी बेसाख्ता  याद आया
भडकती आग पर,
घी नही डाला करते!




मुझे यकीं है के,
तेरे भी ज़ेहन में,
अक्सर आता है,
ये ख्याल के 


तू भी,


कभी तो!


मेरे ज़ख्मों पे दो बूंद 
अपने आंसुओं की गिरा दे,


पर मैं जानता हूं
के तू भी डरता है,
भडकती आग में 
घी डालने से!






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Sunday, November 6, 2011

उम्र का सच




उम्र की नाप का पैमाना क्या है?

साल,

माथे  या गालों की झुर्रियां,

सफ़ेद बालों की झलक,

मैं मानता नहीं,

उम्रदराज़ होने के लिये,
न तो सालों लम्बे सफ़र की ज़रूरत है,
और न अपने चेहरे पे वख्त की लकीरें उकेरने की,

उम्र तो वो मौसम है ज़िन्दगी का,
जो दबे पांव चला आता है,
अचानक कभी भी,
और सिखा जाता है,
सारे दांव पेंच ,दुनियादारी के,

आप मानते नहीं ,

चलो जाने दो,
अगली बार जब ट्रैफ़िक लाइट पर रुको,
तो कार के शीशे से बाहर देखना,  

छै से दस साल की  कई कम उम्र लडकियां ,
अपनी गोद में खुद से जरा ही कम बच्चे को लिये,
दिख जायेंगी,

उम्र नापने के सारे पैमाने,
तोड देने का दिल करेगा मेरे दोस्त!

और  तब,

एक बार, 

सिर्फ़ एक बार,

उन सब ’हेयर कलर’ और ’स्किन क्रीम’ के
नाम याद करने  की कोशिश करना,
जो उम्र के निशान मिटा देने का दावा करते है,


उन में से एक भी,
उम्र के,
इन निशानों को नहीं मिटा सकतीं!


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Friday, November 4, 2011

काश...!


कितने' काश' लिए बैठे थे दिल में,
खामोश ज़ुबाँ, बिसूरते हुए मुँह में,
कब ,क्यो,किधर,कहाँ, कैसे,
इन सवालात घेरे में,
अपनी तो ज़िंदगानी घिरी,
अब, इधर, यहाँ यूँ,ऐसे,
जवाब तो अर्थी के बाद मिले,
क्या गज़ब एक कहानी बनी,
लिखी तो किसी की रोज़ी बनी,
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...