Monday, October 26, 2009

काश...!

कितने' काश' लिए बैठे थे दिल में,
खामोश ज़ुबाँ, बिसूरते हुए मुँह में,
कब ,क्यो,किधर,कहाँ, कैसे,
इन सवालात घेरे में,
अपनी तो ज़िंदगानी घिरी,
अब, इधर, यहाँ यूँ,ऐसे,
जवाब तो अर्थी के बाद मिले,
क्या गज़ब एक कहानी बनी,
लिखी तो किसी की रोज़ी बनी,
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...

Friday, October 23, 2009

अए अजनबी...

अए अजनबी !जब हम मिले,
तुम जाने पहचाने -से थे,
बरसों हमने साथ गुज़ारे,
क्यों बन गए पराये?
क्या हुआ, किस बातपे,
हम तुम नाराज़ हुए?
आओ एक बार फिर मिलें,
अजनबियत दिल में लिए...

Tuesday, October 20, 2009

"झूंठ" सच में! "कविता" पर!

उसकी तस्वीर के शीशे से 
गर्द को साफ़ किया मैने,
उंगली को ज़ुबान से नम कर के,
पर ’वो’ नहीं बोली!

मेरी आंखे नम थीं,
पर ’वो’ नहीं बोली,

शायद वो बोलती,
गर वो तस्वीर न होती,

या शायद
गर वो मेरी तरह
गम ज़दा होती
इश्क में!

वो नहीं थी!
न तस्वीर,
न तस्सवुर,

एक अहसास था,

जिसे मैने ज़िन्दगी से भी ज़्यादा जीने की कोशिश की थी!

टूट गया!

क्यो कि
ख्याब गर जो न टूटे,
तो कहां जायेंगे?
जिन के दिल टूटे हैं
वो खुद को भला क्या समझायेंगे!

शायद ये के:

"टूट जायेंगे तो किरचों के सिवा क्या देगें!
ख्याब शीशे के हैं ज़ख्मों के सिवा क्या देंगें,"

Thursday, October 15, 2009

बस कह दिया! "कविता" पर भी!

चमन को हम साजाये बैठे हैं,
जान की बाज़ी लगाये बैठे हैं.

तुम को मालूम ही नहीं शायद,
दुश्मन नज़रे गडाये बैठे हैं.

सलवटें बिस्तरों पे रहे कायम,
नींदे तो हम गवांये बैठें हैं

फ़ूल लाये हो तो गैर को दे दो,
हम तो दामन जलाये बैठे हैं.

मयकदे जाते तो गुनाह भी था,
बिन पिये सुधबुध गवांये बैठे हैं.

सच न कह्ता तो शायद बेह्तर था,
सुन के सच मूंह फ़ुलाये बैठे हैं.

Wednesday, October 14, 2009

जाने क्यों?

झड़ रहे पत्ते , मानो हो खिज़ा ,

वैसे था तो ये मौसमे बहारां

कूकती नही कोयल,जाने क्यों?

मुरझा रहे हैं गुल,जाने क्यों?..

नदी किनारे खाली है नैय्या,

नदी पार करते नही लोग,

उस किनारेसे महरूम हैं लोग,

खामोश हैं लहरें जाने क्यों?

Thursday, October 8, 2009

तलाश--एक क्षणिका...

रही तलाश इक दिए की,
ता-उम्र इस 'शमा' को,
कभी उजाले इतने तेज़ थे,
की, दिए दिखायी ना दिए,
या मंज़िले जानिब अंधेरे थे,
दिए जलाये ना दिए गए......

Friday, October 2, 2009

दो क्षणिकाएँ..

१)बहारों के लिए...

बहारों के लिए आँखे तरस गयीं,
खिज़ा है कि, जाती नही...
दिल करे दुआए रौशनी,
रात है कि ढलती नही...

२)शाख से बिछडा...

शाखसे बिछडा पत्ता हूँ कोई,
सुना हवा उड़ा ले गयी,
खोके मुझे क्या रोई डाली?
मुसाफिर बता, क्या वो रोई?