Monday, February 28, 2011

दुआ बहार की! "कविता" पर भी!




क्या कह दूँ के तुम्हें करार आ जाये,
मेरी बातों पे तुम्हें ऎतबार आ जाये॥

दिल इस दुनिया से क्यूँ नहीं भरता,
उनकी बेरूखी पे भी प्यार आ जाये।

दर्द इतने मैं कहाँ छुपाऊँ भला,
मौत से कहो एक बार आ जाये।

वीरानियाँ भी तो तेरा हिस्सा हैं,
या खुदा इधर भी बहार आ जाये।

Tuesday, February 22, 2011

था आफताब भी....

था आफताब भी ,था माहताब भी!
तब अँधेरे घनेरे थे,ऐसा नही,
थे रौशनी के हज़ार क़ाफ़िले भी!
सर पर के बोझ का दोष नही,
पगतले तिमिर का आक्रोश नही,
खुली सराय बुला रही थी!
चमन में हलचली थी मची,
संभलो लुटेरा है,यहीँ कहीँ!
न सुननेकी मैंने जो ठानी थी!
मै तो उजालों में ठगी जानी थी!

Friday, February 4, 2011

गुफ़्तगू बे वजह की!कविता पर भी!



ज़रा कम कर लो,
इस लौ को,
उजाले हसीँ हैं,बहुत!
मोहब्बतें,
इम्तिहान लेती हैं
मगर! 

पहाडी दरिया का किनारा,
खूबसूरत है मगर,
फ़िसलने पत्थर पे
जानलेवा 
न हो कहीं!

मैं नही माज़ी,
मुस्तकबिल भी नही,
रास्ते अक्सर
तलाशा करते हैं
गुमशुदा को!मगर!

किस्मतें जब हार कर,
घुटने टिका दे,
दर्द साया बन के,
आता है तभी!


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