Wednesday, April 13, 2011

किसी ने पूछा...

किसी ने पूछा मुझ से ,
रोती हो क्यों अकेले,अकेले?
हँसी आ गयी सुनके!
कहा,यही तो कर सकती हूँ अकेले!
हँसने के लिए चाहियें,
क्या जानूँ कितने क़ाफ़िले!
हँसने गर लगी अकेले,
कहोगे,पगली है ये!
पागल ख़ाने भेजो इसे!

Tuesday, April 5, 2011

काश...!


कितने' काश' लिए बैठे थे दिल में,
खामोश ज़ुबाँ, बिसूरते हुए मुँह में,
कब ,क्यो,किधर,कहाँ, कैसे,
इन सवालात के घेरे में,
अपनी तो ज़िंदगानी घिरी,
अब, इधर, यहाँ, यूँ,ऐसे,
जवाब तो अर्थी के बाद मिले,
क्या गज़ब एक कहानी बनी,
लिखी तो किसी की रोज़ी बनी,
ता-उम्र हम ने तो फ़ाक़े किए,
कफ़न ओढ़ा तो चांदी बनी...

एक पुरानी रचना पेश की है...माफ़ी चाहती हूँ!