Saturday, August 15, 2009

पीछेसे वार मंज़ूर नही...

अँधेरों इसके पास आना नही,
बुझनेपे होगी,"शमा"बुझी नही,
बुलंद एकबार ज़रूर होगी,
मत आना चपेट में इसकी,
के ये अभी बुझी नही!

दिखे है, जो टिमटिमाती,
कब ज्वाला बनेगी,करेगी,
बेचिराख,इसे ख़ुद ख़बर नही!
उठेगी धधक , बुझते हुएभी,
इसे पीछेसे वार मंज़ूर नही!

कोई इसका फानूस नही,
तेज़ हैं हवाएँ, उठी आँधी,
बताओ,है शमा कोई ऐसी,
जो आँधीयों से लड़ी नही?
ऐसी,जो आजतक बुझी नही?

सैंकडों जली,सैंकडों,बुझी!
हुई बदनाम ,गुमनाम कभी,
है शामिल क़ाफ़िले रौशनी ,
जिन्हें,सदियों सजाती रही!
एक बुझी,तो सौ जली॥!

चंद माह पूर्व की रचना है..

7 comments:

विजय तिवारी " किसलय " said...

शमा जी
"पीछे से वार मंजूर नहीं"
रचना पढ़ी अच्च्चे ख़यालात हैं
आप ने सच ही लिखा है - सैंकडों जली,सैंकडों,बुझी!
हुई बदनाम ,गुमनाम कभी,
है शामिल क़ाफ़िले रौशनी ,
जिन्हें,सदियों सजाती रही!
एक बुझी,तो सौ जली॥!

- विजय तिवारी " किसलय "

SID...LUV U...FOREVER said...

hello miss shama...
m siddhant ...
got ur comment on my blog...

wanted to express thanks to u but did'nt find any way to contact u so clicked my brain on comment...

read ur blog also...
u have mastery on it...
m a kiddo here...

well thanks once again...

would love to have a contact with u ...

स्वप्न मञ्जूषा said...

अँधेरों इसके पास आना नही,
बुझनेपे होगी,"शमा"बुझी नही,
बुलंद एकबार ज़रूर होगी,
मत आना चपेट में इसकी,
के ये अभी बुझी नही!
kya baat hai shama ji,
zabardast..ojpoorn kavita..
ummeed aur hausla badhati hai..
bahut khoob..
hriday mein kuch jaga diya aapne..

Chandan Kumar Jha said...

आपकी एक और अच्छी रचना. आभार.

Anonymous said...

अच्छी रचना. आभार.

ज्योति सिंह said...

unchch star ki rachana hai aapki ,gaharai ko samete ,umda .

Prem said...

आज बहुत दिनों बाद समय निकाला,आपकी सारी रचनाएँ पढ़ी ,क्या लिखूं और कैसे लिखूं कि कितना अच्छ लगा। हर नज़म का अंदाजे बयाँ कमाल का है । बहुत बहुत शुभ कामनाएं .