Monday, August 24, 2009

ताल्लुकात का सच!

मुझसे कह्ते तो सही ,जो रूठना था,
मुझे भी , झंझटों से छूटना था.

तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे,
आईना था पुराना, टूटना था.

बात सीधी थी, मगर कह्ता मै कैसे,
कहता या न कहता, दिल तो टूटना था.

मैं लाया फूल ,तुम नाराज़ ही थे,
मैं लाता चांद, तुम्हें तो रूठना था.

याद तुमको अगर आती भी मेरी,
था दरिया का किनारा , छूटना था.

ये कविता मैंने "सच में" और "कविता" Blog पे साथ साथ Post की है. जिससे दोनो Blogs के uncommon पाठक भी मज़ा ले सकें!
The same is also avilable at www.sachmein.blogspot.com

6 comments:

मुकेश कुमार तिवारी said...

शमा जी,

बहुत ही सधी हुई गज़ल, अहसासों को शिद्दत से उकेरती हुई।

यह बंदिश मुझे खासतौर पर पसंद आई :-

मुझसे कह्ते तो सही ,जो रूठना था,
मुझे भी,.... झंझटों से छूटना था.

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

shama said...

लियो जी ,
बड़े दिनों बाद सही ,लेकिन बेहतरीन रचना के साथ आपका आगमन बेहद पसंद आया ॥!

रूठने वाले, रूठे ही रहते हैं..क्या मनाना...या बहलाना...!

Vinay said...

अति उत्तम
---
'चर्चा' पर पढ़िए: पाणिनि – व्याकरण के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार

Dr. Amarjeet Kaunke said...

beautiful.....kamaal hai.......

Vipin Behari Goyal said...

क्या बात है


बहुत खूब

Yogesh Verma Swapn said...

umda rachna. badhaai.