Saturday, August 8, 2009

रुत बदल दे !

पार कर दे हर सरहद जो दिलों में ला रही दूरियाँ ,
इन्सानसे इंसान तक़सीम हो ,खुदाने कब चाहा ?
लौट के आयेंगी बहारें ,जायेगी ये खिज़ा,
रुत बदल के देख, गर, चाहती है फूलना!
मुश्किल है बड़ा,नही काम ये आसाँ,
दूर सही,जानिबे मंजिल, क़दम तो बढ़ा!

8 comments:

Unknown said...

aameen !

अर्चना तिवारी said...

वाह !!!!!!!!!! बहुत खूब...

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर . आभार.

vandana gupta said...

bahut badhiya

Neeraj Kumar said...

मुश्किल है बड़ा,नही काम ये आसाँ,
दूर सही,जानिबे मंजिल, क़दम तो बढ़ा!

बहुत ही अच्छी रचना और सामयिक भी...क्यूँ कि स्वतंत्रता दिवस भी आ ही रहा है...फिजा में देशभक्ति घुली जा रही है...

लोगों के बीच दूरिया घटने कि कोशिश होनी ही चाहिए...

Amit K Sagar said...

Waah बहुत खूब! शुक्रिया. जारी रहें.
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१५ अगस्त के महा पर्व पर लिखिए एक चिट्ठी देश के नाम [उल्टा तीर]
please visit: ultateer.blogspot.com

dhaval said...

it is butyfull

hem pandey said...

'दूर सही,जानिबे मंजिल, क़दम तो बढ़ा! '
- कदम बढाना ही सफलता की पहली सीढ़ी है.