Thursday, August 13, 2009

कुछ मुक्तक


दिल करता है, कि मैं कुछ पुराने लिखे हुए मुक्तक आप सब के साथ बाँट लूँ,क्यों , कि:


"यह वो दौलत है जो बाँटे से भी बढ़ जाती है,
ज़रा हँस दे ओ भीगी पलकों को छुपाने वाले."


पूरी ग़ज़ल फिर कभी, अभी तो चंद मुक्तकों की बारी है,
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अच्छा हुआ के आप भी जल्दी समझ गये,

दीवानगी है शायरी,कोई बढ़िया शगल नही.

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जन्म दिन भी अज़ीब होते हैं,
लोग तॉहफ़ों के बोझ ढोते हैं,
कितनी अज़ीब बात है लेकिन,
पैदा होते ही बच्चे रोते हैं.


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जब मैं पैदा हुआ तो रोया था,
फिर ये बात बिसार दी मैने,
मौत की दस्तक़ हुई तो ये जाना,
ज़िंदगी सो कर गुज़ार दी मैने.


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मेरी बर्बादी मे वो भी थे बराबर के शरीक़,
हां वही लोग जो,
मेरी म्य्यत पे फूट कर रोए.


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जज़्बात में अल्फ़ाज़ की ज़रूरत ही कहाँ हैं,
गुफ्तगू वो के तू सब जान गया,और मैं खामोश,यहाँ हूँ.





10 comments:

shama said...

वाह ..क्या कहने ..कमाल की रचनाएँ हैं ..मै स्तंभित हूँ ..!
तहे दिलसे शुक्रिया ,इन्हें 'कविता ' पे पोस्ट करने के लिए !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

जन्म दिन भी अज़ीब होते हैं,
लोग तॉहफ़ों के बोझ ढोते हैं,
कितनी अज़ीब बात है लेकिन,
पैदा होते ही बच्चे रोते हैं.

बहुत सुन्दर और गूढ़ बात कही आपने यहाँ !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

जन्म दिन भी अज़ीब होते हैं,
लोग तॉहफ़ों के बोझ ढोते हैं,
कितनी अज़ीब बात है लेकिन,
पैदा होते ही बच्चे रोते हैं.

बहुत सुन्दर और गूढ़ बात कही आपने यहाँ !

Unknown said...

gazab ke she'r
kamaal k muktak
___________________waah
___________________waah
________badhaai !

Vinay said...

एक से बढ़कर एक

Meenu Khare said...

"यह वो दौलत है जो बाँटे से भी बढ़ जाती है,
ज़रा हँस दे ओ भीगी पलकों को छुपाने वाले."

कमाल की रचनाएँ...

Chandan Kumar Jha said...

सभी रचनायें बहुत सुन्दर है.....

संजीव गौतम said...

वाह!वाह! शमा जी आज तो आपकी इन रचनाओं को पढकर हैरत में हूं. वाह के अलावा कोई शब्द नहीं हैं.

shama said...

ये रचनाएँ 'kthleo ' जी की हैं ! ये मेरी नही ..आज, इसीलिये तो मैंने भी comment लिखा ..! उनका नाम लेके लिखा नही,ये मेरी गलती हुई..क्षमा चाहती हूँ!

Unknown said...

Dile aabad na puchho "Shadai" dile barbad na puchho,
kuch isse pahle na puchho kuch iske bad na pucho