Wednesday, August 12, 2009

धूप में चल दिए..

घनी छाँव रोकती रही ..
कड़ी धूप बुलाती रही ,
हम धूप में चल दिए ,
दरख्तोंके साये छोड़ दिए
रुकना मुमकिन न था ,
चलना पड़ ही गया ..
कौन ठहरा यहाँ ?
अपनी भी मजबूरी थी ..
इक गाँव बुलाता रहा,
एक सफ़र जारी रहा..

8 comments:

Chandan Kumar Jha said...

सुन्दर रचना.....उत्कृष्ट.आभार.


सफ़र रुकता नहीं
पांव थमते नहीं
बस चलते जाना है....
चलते जाना है...

Meenu Khare said...

बहुत अच्छी रचना. अच्छा लगा पढ़ कर.

आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq' said...

इक गाँव बुलाता रहा,
एक सफ़र जारी रहा..
सफ़र ज़ारी ही रहेगा शमा जी .........

Prem said...

बहुत दिनों बाद आपका ब्लॉग खोला ,आपकी सारी कवितायें पढ़ डाली ,आपकी अभिव्यक्तियों के पीछे छिपा दरद मन को छू लेता है ,बार बार पढने को जी चाहता है ,मानो उस दरद को पकड़ लेना चाहता हो । इतना भावः पूर्ण लिख ने के लिए बधाई ।

Urmi said...

बहुत ही ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! बढ़िया लगा!

Yogesh Verma Swapn said...

ghani chhanv,,,,,,,,,,,,,,,,,chal diye.

khoobsurat panktian, mushkilon se ghabraana kya. bahut khoob.

vijay kumar sappatti said...

shama ji

kavita ki tarah hum sab ka safar jaari hai bhaavnao ki sadko par... aap bahut accha likhti hai .. man ko choo jaati hai aur ek kasak si uthni hai man me ....

badhai ..
namaskar.

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/

vandana gupta said...

sundar prastuti......safar jari hi rahta hai bina ruke.