Monday, August 31, 2009

बाज़ारे आम...

उस राज़ को क्या राज़ कहें,
जो चौराहों पे सरे आम हो?
जो 'राज़' हमारे पहलू में है,
वो हर गलीमे हो,उसे क्या कहें?
यही के,जो ख़ुद को 'ख़ास' कहें,
वो बाज़ारे आम से दूर रहें?
छवी ,जो उनकी हमारी आँखों में है,
वही रखें,उसे क्यों गिराएँ हैं?

11 comments:

मुकेश कुमार तिवारी said...

शमा जी,

खूबसूरत अंदाज है कहना कि " राज को राज रहने दो"।

अच्छी लगी रचना।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

ओम आर्य said...

एक सुन्दर भाव की सुन्दर प्रस्तुति

Vinay said...

सुन्दर काव्य सृजन!

Yogesh Verma Swapn said...

SUNDER ABHIVYAKTI.

Amit K Sagar said...

वाह! बहुत सुन्दर...राज आखिर राज ही रहेगा क्या? इसे भी बयान कर ही दो! जारी रहें. आपकी रचनाएं मेरे हिसाब से मुक़म्मल होतीं हैं.
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kailashpur said...

haqeeqat hai sab kuch jo likha hai

majid

रश्मि प्रभा... said...

उस राज़ को क्या राज़ कहें,
जो चौराहों पे सरे आम हो?
.....
दर्द और मासूमियत दोनों ही है आपके लेखन में.......

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर!!!!!!

Chandan Kumar Jha said...

बहुत ही सुन्दर भाव.

Prem said...

bahu khoob

'sammu' said...

पहलू में कोई 'राज़ ' हो बाज़ार तलक पहुंचे
या तुममे कमी होगी या 'राज़' नहीं होगा