मुझसे कह्ते तो सही ,जो रूठना था,
मुझे भी , झंझटों से छूटना था.
तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे,
आईना था पुराना, टूटना था.
बात सीधी थी, मगर कह्ता मै कैसे,
कहता या न कहता, दिल तो टूटना था.
मैं लाया फूल ,तुम नाराज़ ही थे,
मैं लाता चांद, तुम्हें तो रूठना था.
याद तुमको अगर आती भी मेरी,
था दरिया का किनारा , छूटना था.
9 comments:
On my Blog "सच में" पर इस रचना को एक भी पाठक नही मिला,देखता हूं,"कविता" के प्रबुद्ध पारखी यहां कैसे treat करते हैं इसे.
It's Very Beautiful,I am not "प्रबुद्ध पारखी" but can say that any body can feel the pain.
When some body wants to go away, no body can do any thing...
याद तुमको अगर आती भी मेरी,
था दरिया का किनारा , छूटना था.
kamaal ka likha hai aapne...aapko yahaan padhna ek pleasant surprise tha...aapke blog pe kisi tarah nazar andaaz huyee hogi rachna,par likha bahut achha hai
निधी,
Thanks for identintifying with feelings of the कविता,आप ’प्रबुद्ध पारखी’, ही हो क्यों कि सुन्दर मन ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति को मह्सूस कर,खुले मन से तारिफ़ कर सकता है.
Kharab tabiyat ke kaaran net pe nahee a payee thee...rachna padhke nishabd hun..!
Shukrguzaar hun...aisee rachna is blog ko naseeb huee...
सजल,
शुक्रिया! ’कविता’(KAVITA:kavitasbyshama.blogspot.com) और ’सच में’(www.sachmein.blogspot.com) के प्रति प्रेम बनायें रखें!
शमा जी,
आपकी सेहत के लिये,उस Almighty से दुआ.
आपकी तारीफ़ हमेशा मेरी रचना के हक से ज़्यादा होती है, दरअसल आप का हुस्ने नज़र है ये.मै तो बस मामूली सी बात दिल से कह देता हूं.
याद तुमको अगर आती भी मेरी,
था दरिया का किनारा , छूटना था.
sundar abhivyakti,
dil ko chho gayi yah kavita ..
bahut hi sundar likha hai......
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