कभी झपकी पलक, तो देखे,
सपने उन्हीं के , की दुआएँ,
वारीन्यारी गयी उन्हीं के लिए!
गए छोड़, हालपे मुझको मेरे !
तुम मसरूफ मिलते रहो
आरामसे कहते रहो,
ऐसा करो, कभी वैसा करो,
कहो ना! क्या चाहते हो?
खुला आसमाँ मिल गया,
समय रफ्तारसे उड़ चला,
गुज़रे हुएने नही नहीं लौटना,
मुडके देखो,गौर से तुम ज़रा...
पलमे अनागत बनेगा विगत,
पकडो,तो पकडो...वर्तमान !
जो है तुम्हारा अनागत ,
बनेगा एक दिन वो विगत!
हर दिशामे दौड़ते हो!!
लम्हये फुरसत निकालो,
शामे ज़िन्दगीमे क्या चाहते हो?
गौरसे फैसला कर लो,देखो!
चाहिए धन या नाम सोचलो,
के चाहिए प्यार,सोच लो !
मिल नहीं सकते साथ दोनों,
आ रहीँ आवाजें, इन्हें भी सुनो..!
घड़ी इम्तेहानकी है,समझो,
सनम, किस कीमत पे मिलेगा,
नामो धन? कीमत लगी जो,
चुकाने चलो, वो प्यारही हो?
माँ रोए, याद कर लाडली को,
बेटी पोंछे है आँसू, याद कर अपनी माँ को,
पिस रही बीछ पाटोंके तीनो,
मक़ाम ऐसा, जहाँ तुम नही हो!
नही हो..मेरे जहाँ मे ...नही हो..
कहाँ हो, आभी जाओ, जहाँ हो..
किस दिशामे पुकारूँ, कहाँ हो..
आओ, आओ, जहाँ हो...!
4 comments:
aaj insaan sirf dhan ke peecha pada hai phir chahe wo kisi bhi keemat par mile.
bahut badhiya rachna.....jazbaton ko bayan karti huyi
बहुत बहुत बहुत बहुत ख़ूबसूरत...
---
तख़लीक़-ए-नज़र
दूरियां खुद कह रहीं थीं,
नज़दीकीयां इतनी न थीं।
अहसासे ताल्लुकात में,
बारीकियां इतनी न थीं।
Abhi itna hi, पूरी गज़ल के लिये करें इन्तेज़ार और देखते रहे,
www.sachmein.blogspot.com उनके लिये जो इस लिन्क का रास्ता भूल गये हों!
वाह क्या बात है,सुन्दर शब्द, सुन्दर विन्याष रचना अच्छी लगी।
Post a Comment