Friday, June 19, 2009

चराग के सायेमे .......

एक मजरूह रूह दिन एक
उड़ चली लंबे सफ़र पे,
थक के कुछ देर रुकी
वीरानसी डगर पे .....

गुज़रते राह्गीरने देखा उसे
तो हैरतसे पूछा उसे
'ये क्या हुआ तुझे?
ये लहूसा टपक रहा कैसे ?
नीरसा झर रहा कहाँसे?'

रूह बोली,'था एक कोई
जल्लाद जैसे के हो तुम्ही
पँख मेरे कटाये,
हर दिन रुलाया,
दिए सैंकडों ज़खम्भी,
उस क़ैद से हू उड़ चली!

था रौशनी ओरोंके लिए,
बना रहनुमा हज़ारोंके लिए
मुझे तो गुमराह किया,
उसकी लौने हरदम जलाया
मंज़िलके निशाँ तो क्या,
गुम गयी राहभी!

किरनके लिए रही तरसती
ना जानू कैसे मेरे दिन बीते
कितनी बीती मेरी रातें,
गिनती हो ना सकी
काले स्याह अंधेरेमे !

चल,जा,छोड़, मत छेड़ मुझे,
झंकार दूँ, मैं वो बीनाकी तार नही!
ग़र गुमशुदगीके मेरे
चर्चे तू सुने
कहना ,हाँ,मिली थी
रूह एक थकी हारी ,
साथ कहना येभी,
मैंने कहा था,मेरी
ग़ैर मौजूदगी
हो चर्चे इतने,
इस काबिल थी कभी?

खोजोगे मुझे,
कैसे,किसलिये?
मेरा अता ना पता कोई,
सब रिश्तोंसे दूर चली,
सब नाते तोड़ चली!
बरसों हुए वजूद मिटे
बात कल परसों की तो नही...

शमा

5 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

आपनें बढ़िया लिखा है ,कबीले तारीफ .

ओम आर्य said...

शमा जी, आज तक यहाँ तक se अच्छा मजेदार संस्मरण पढ़ के आ रहा हूँ, और ये अच्छी से कविता भी हाथ लग गयी. आपने मेरी रचनाओं की कुछ जयादा हीं तारीफ़ कर दी हूँ. वैसे अच्छा हीं लगता है. पर सोंचता हूँ कि सही में ऐसा है क्या?

mark rai said...

kaaphi achchha likha hai.....achaanak nind se jaag kar bhi itani achchhi rachna likhi jaa sakti hai.....wishwaas nahi hota...

Nitish said...

bahut uttam kavya mantra mukta kar diya.... aanand se bhar diya....

Nitish said...

bahut uttam kavya mantra mukta kar diya.... aanand se bhar diya....