हूँ भटकती हुई बदरी,
अपनेही बंद आसमानोंकी,
मुझे बरसनेकी इजाज़त नही....
वैसे तो मुझमे, नीरभी नही,
बिजुरीभी नही,युगोंसे हूँ सूखी,
पीछे छुपा कोई चांदभी नही....
चाहत एक बूँद नूरकी,
सदियोंसे जो मिली नही....
हो गयी हूँ आदी अंधेरों की...
के हूँ भटकती हुई बदरी,
अपनेही बंद आसमानोंकी....
तमन्नाएँ रखूँ, लाज़िम नही....
शमा।
अपनेही बंद आसमानोंकी,
मुझे बरसनेकी इजाज़त नही....
वैसे तो मुझमे, नीरभी नही,
बिजुरीभी नही,युगोंसे हूँ सूखी,
पीछे छुपा कोई चांदभी नही....
चाहत एक बूँद नूरकी,
सदियोंसे जो मिली नही....
हो गयी हूँ आदी अंधेरों की...
के हूँ भटकती हुई बदरी,
अपनेही बंद आसमानोंकी....
तमन्नाएँ रखूँ, लाज़िम नही....
शमा।
3 comments:
शमा जी बहुत सुन्दर कविता प्रस्तुत की है आभार
duniya ki kuch naayab cheezen jaise chaand, sitare, jugnu, andheron me rahkar hi doosron ko roshni deti hain.
apni kavitaaon ki shama jallaye rakhiye.
हूँ भटकती हुई बदरी,
अपनेही बंद आसमानोंकी,
मुझे बरसनेकी इजाज़त नही....
bahut khoosurat...
behtareen....
aapka 'http://shamasnsmaran.blogspot.com'
to kaam hi nahi kar raha hai. dekhiyega jara.
aapka mere blog par aana accha laga,
aap to sarwagun sampann ( kavita, lekh, bagwaani, chitrakala...) hain, bahut hi jyada khushi hui aap se mil kar, aapki bagwaani ki kala to varnanateet hai, main bahut hi jyada prabhavit hui hun,
agar sangeet ka bhi shauk hai to meri gayi hui jaishakar prasad ji ki kavita sun sakti hain 'hindi-yugm' par ,
http://podcast.hindyugm.com/2009/06/music-in-chhayavaad-kavi-jaishankar.html
main dil se kahti hun ek baar fir aap ko jitna jaan paayi mera saubhagya hai
Swapna Manjusha 'ada'
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