गुलोंसे गेसू सजाये थे,
दामनमे ख़ार छुपाये थे,
दामन ऐसा झटक गए,
तार,तार कर गए ,
गुल सब मुरझा गए...
पलकोंमे छुपाये दर्द थे,
होटोंपे हँसीके साये थे,
खोल दी आँखें तपाकसे,
हमें बे नक़ाब कर गए,
बालोंसे गुल गिरा गए.....
हम अपने गिरेबाँ में थे,
वो हर इकमे झाँकते थे,
बाहर किया अपने ही से
बेहयाका नाम दे गए,
गुल गिरके रो दिए....
वो तो मशहूर ही थे,
हमें सज़ाए शोहरत दे गए,
बेहद मशहूर कर गए,
लुटे तो हम गए,
इल्ज़ाम हमपे धर गए....
दर्द सरेआम हो गए,
चौराहेपे नीलाम हो गए,
आँखें बंद या खुली रखें,
पलकें तो वो झुका गए,
गेसूमे माटी भर गए...
बाज़ारके साथ हो लिए,
किस्सये-झूट कह गए,
अब किस शेहेरमे जाएँ?
हर चौखटके द्वार बंद हुए,
निशानों- राहेँ मिटा गए...
वो ये ना समझें,
हम अंधेरोंमे हैं,
उजाले तेज़ यूँ किए ,
साये भी छुप गए,
"शमाको" ऐसे,जला गए....
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3 comments:
achchi rachna.
लाजवाब!
और क्या कहूं!
Sachchi rachna hai...
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