सूरजने जब पूरबाको चूमा,
लजाया मुखडा रक्तिम हुआ....
वही उष:काल कहलाया...
जब सूरजने उसको चूमा....
वही रंग मैंने हथेलियोंपे सजाया,
सुर्ख, खिरामा, वो बना,रंगे हिना !
जब उन्होंने घूँघट का पट खोला,
उन हाथोंने अपना चेहरा छुपाया!
जब माँग चूमी उन्होंने,
भर दिए अनगिनत सितारे,
पूरा हुआ सिंगार मेरा...
जब छुआ चेहरा मेरा....
शर्माते हुए इक किरन खिली,
लाजकी पंखुडी खुल गयी,
भरमाई परिणीता गठरी बनी...
बाहोंका हार गलेमे पाया...!
किस्मतको,उसीपे रश्क हुआ,
वो सपना था,सच कब हुआ?
बरसों बाद ख्वाबोंका लम्हा,
मुझे सताने क्यों लौट आया?
टूटे सपनेने कितना थकाया,
जितना जोड़ा, उतना बिखरा,
दिल उसे क्यों नही भूला?
जिसने मुझे इतना रुलाया?
जो कभी नही सजा,ऐसा,
रंगे हिना क्यों याद आया?
लजाया मुखडा रक्तिम हुआ....
वही उष:काल कहलाया...
जब सूरजने उसको चूमा....
वही रंग मैंने हथेलियोंपे सजाया,
सुर्ख, खिरामा, वो बना,रंगे हिना !
जब उन्होंने घूँघट का पट खोला,
उन हाथोंने अपना चेहरा छुपाया!
जब माँग चूमी उन्होंने,
भर दिए अनगिनत सितारे,
पूरा हुआ सिंगार मेरा...
जब छुआ चेहरा मेरा....
शर्माते हुए इक किरन खिली,
लाजकी पंखुडी खुल गयी,
भरमाई परिणीता गठरी बनी...
बाहोंका हार गलेमे पाया...!
किस्मतको,उसीपे रश्क हुआ,
वो सपना था,सच कब हुआ?
बरसों बाद ख्वाबोंका लम्हा,
मुझे सताने क्यों लौट आया?
टूटे सपनेने कितना थकाया,
जितना जोड़ा, उतना बिखरा,
दिल उसे क्यों नही भूला?
जिसने मुझे इतना रुलाया?
जो कभी नही सजा,ऐसा,
रंगे हिना क्यों याद आया?
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
जो कभी नही सजा,ऐसा,
रंगे हिना क्यों याद आया?
दिलचस्प .....बस एक अनुरोध है कुछ स्पेलिंग ठीक कर ले व् वाक्यों के बीच अंतर दे...कविता की निरंतरता में बाधा आती है.
जो कभी नही सजा,ऐसा,
रंगे हिना क्यों याद आया? .......bahut achchhi kavita.....
अगर तूफ़ान में जिद है ... वह रुकेगा नही तो मुझे भी रोकने का नशा चढा है ।
देख लेगे तुम्हारी जिद या मेरा नशा ... किसमे कितना ताकत है ।
तुम्हारी जिद से मेरा सितारा डूबने वाला नही । हम दमकते साए है ।
असर तो जरुर छोड़ेगे ।
sooraj ne poorva ko chooma .............vahee ushakal kahlaya .
adbhut kalpana shakti ke ubhre pratibimb .
किस्मतको,उसीपे रश्क हुआ,
वो सपना था,सच कब हुआ?
बरसों बाद ख्वाबोंका लम्हा,
मुझे सताने क्यों लौट आया?
इक टूटे सपनेने बेहद थकाया,
जितना जोड़ा, उतना बिखरा,
दिल उसे क्यों नही भूला?
जिसने मुझे इतना रुलाया?
sunder , sarahniya bhavabhivyakti, shama ji, badhai
shama ji deri se aane ke liye maafi chahta hoon .. kaam me vyast tha ..
aapki kavita padhi , bahut sundar hai .. prem bhaav poori tarah se ubhar kar aaye hai ..
aapne bahut acchi blending bhi ki hai ..mausam ke rango ko prem aur aatmiyata ke rango ke saath....
aapko dil se badhai ..
विजय
http://poemsofvijay.blogspot.com