Friday, June 12, 2009

नज़दीकियों का सच!


दूरियां खुद कह रही थीं,
नज़दीकियां इतनी न थी।
अहसासे ताल्लुकात में,
बारीकियां  इतनी न थीं।

चारागर हैरान क्यों है,
हाले दिले खराब पर।
बीमार-ए- तर्के हाल की,
बीमारियां इतनी न थीं।

रो पडा सय्याद भी,
बुलबुल के नाला-ए- दर्द पे।
इक ज़रा सा दिल दुखा था,
बर्बादियां इतनी न थीं।

उसको मैं खुदा बना के,
उम्र भर सज़दा करूं?
ऐसा उसने क्या दिया था,
मेहरबानियां इतनी न थीं।


5 comments:

Unknown said...

kya khoob ghazal !
bahut khoob ghazal !

Vinay said...

behtareen...

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

अलबेला जी,
बेबाक दाद और तारीफ़ों के लिये, तहे दिल से शुक्रिया.
कभी 'सच में’www.sachmein.blogspot.com पर तशरीफ़ लायें.

shama said...

Leoji,
Jo "nazdiyon kaa " sach kaa poorv bhag hai, wo 2 re bhagse kaheen adhik achha laga...apne aapme mukammal...!

Gar poorv bhag padha na hota to, iseepe ware nyare jana tha..lekin pehleke baad ye chhup gaya..! Mai galat bhi ho sakti hun...jaisa maine kaha, mai rachna kaar nahee..lekhak/kavi dono nahee...gustaaqee hue ho to maaf karen..!

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

आपका कहना एक दम ठीक है.
पर आप बार बार ये न कहें कि आप रचनाकार नहीं है,हम में से कोई भी नहीं है.हम सब नूरानी पैगामों को लफ़्ज़ देने का काम करने की कोशिश करते है,अब कभी ये गज़ल बन जाते है,कभी नज़्म कभी पेन्टिगस और कभी बस सोते हुये बच्चे के चेहरे की मुस्कुराह्ट.