Tuesday, June 9, 2009

माहौल का सच!


लिखता नही हूँ शेर मैं, अब इस ख़याल से,
किसको है वास्ता यहाँ, अब मेरे हाल से. 
 
चारागर हालात मेरे, अच्छे बता गया,
कुछ नये ज़ख़्म मिले हैं मुझे गुज़रे साल से

मासूम लफ्ज़ कैसे, मसर्रत अता करें,
जब भेड़िया पुकारे मेमने की खाल से.

इस तीरगी और दर्द से, कैसे लड़ेंगे हम,
 मौला तू , दिखा रास्ता अपने ज़माल से.

उम्मीद है, शमा जी के Bolg के पारखी पाठक इस रचना को भी अपना प्यार देगें
_Ktheleo

4 comments:

Unknown said...

dam hai !
baat me dam hai !
waah !
bahut khoob !
bahut khoob !

Vinay said...

बहुत ख़ूब!

!!अक्षय-मन!! said...

वाह इस ग़ज़ल की जितनी तारीफ की जाये कम है............
बहुत ही सुन्दर भावः डाले हैं ग़ज़ल में

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

शुक्रिया तहे-दिल से!