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Kavita
Saturday, June 6, 2009
सुर और लय...
"घड़ी इम्तेहानकी...." इस रचना में, सुर और लय के मुताबिक, चंद बदलाव किए हैं...टिप्पणी से पता चलेगा,( जो पढ़ चुके हैं,) कि, क्या ये बेहतर है ?आखरी ध्रुपद इसमे और लिखा है...
1 comment:
ktheLeo (कुश शर्मा)
said...
This comment has been removed by the author.
June 6, 2009 at 10:42 AM
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ताल्लुकात का सच!
भटकती हुई बदरी....
शमा"को ऐसे जला गए...
दरख़्त ऊँचे थे...
मुकम्मल जहाँ ...
एक बगिया बनाएँ...
चराग के सायेमे .......
कीमत हँसी की.....
मत काटो इन्हें !!
शब्दों की जंग !
वो सपना याद आया....
उसका सच!
बहुत पहले एक गज़ल कही थी,"मैं तुम्हारा नहीं हूँ ,य...
बेआबरू हुए...
हद से गुजरा...
नज़दीकियों का सच!
मैं नहीं हूं!
बरखा रानी....!
माहौल का सच!
जब, जब किवाड़ खडके...
जल उठी" शमा....!"
वतनका क्या होगा!
सुर और लय...
घड़ी इम्तेहानकी....
वो कहाँ खो गए?
"शमा"को बुझाके..!
जो मौत देख पाते हैं!
.....जीवन नही !
तुम्हारे बिन....
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