Friday, June 5, 2009

वो कहाँ खो गए?

दर्द बयाँ होते रहे ,
वो साथ छोड़ते गए ...
लगा, पास आएँगे ,
वो और दूर जाते रहे ..
हमसाया खुदको कहनेवाले
चुभते उजालों मे खो गए ...
शब गुज़रे या दिन बीते,
हम तनहाही रह गए...


"राही फिर अकेला है "इस ब्लॉग पे "अंजुम" को पढ़ा,तो ये लिखा गया...

2 comments:

vandana gupta said...

lajawaab..shandaar.dard bayan karti rachna

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

दूरियां खुद कह रहीं थीं,
नज़दीकीयां इतनी न थीं।
अहसासे ताल्लुकात में,
बारीकियां इतनी न थीं।

Abhi itna hi, पूरी गज़ल के लिये करें इन्तेज़ार और देखते रहे,
www.sachmein.blogspot.com उनके लिये जो इस लिन्क का रास्ता भूल गये हों!