Tuesday, May 26, 2009

पेहचाना मुझे?

" किसीके लिए हक़ीक़त नही,
तो ना सही!
हूँ मेरे माज़ीकी परछाई,
चलो, वैसाही सही!
जब ज़मानेने मुझे
क़ैद करना चाहा,
मै बन गयी एक साया,
पहचान मुकम्मल मेरी
कोई नही तो ना सही!
किसीके लिए...

रंग मेरे कई,
रूप बदले कई,
किसीकी हूँ सहेली,
तो किसीके लिए पहेली,
मुट्ठी मे बंद करले,
मै वो खुशबू नही,
किसीके लिए...

कभी किरन आफताबकी
तो कभी ठंडक माहताबकी,
हाथमे लिया आरतीका दिया,
कभी खडी पकड़ जयमाला,
संग्राममे बन वीरबाला कूद पडी,
जब, जब ज़रूरत पडी,
किसीके लिए....

बनके पदमिनी कूदी अँगारोंपे
नाम रौशन किए खानदानोके
हर घाव, हर सदमा झेल गयी,
फटे आँचलसे शर्मो-हया ढँक गयी,
किसीके लिए...

जब जिसे ज़रूरत पडी,
मै उनके साथ होली,
सीनेपे खाए खंजर,
सीनेपे खाई गोली,
जब मुझपे कड़की बिजली,
क्या अपने क्या पराये,
हर किसीने पीठ कर ली
हरबार मै अकेली जली!
किसीके लिए.....

ज़रा याद करो सीता,
या महाभारतकी द्रौपदी!
इतिहासोंने सदियों गवाही दी,
मरणोत्तर खूब प्रशंसा की,
जिंदगीके रहते प्रताड़ना मिली ,
संघर्षोंमे हुई नही सुनवाई
किसीके लिए...

अब नही चाहिए प्रशस्ती,
नाही आसमानकी ऊँचाई,
जिस राह्पे हूँ निकली,
वो निरामय हो मेरी,
तमन्ना है बस इतनीही,
गर हो हासिल मुझे,
बस उतनीही ज़िंदगी...
किसीके लिए...

जलाऊँ अपने हाथोंसे ,
एक शमा झिलमिलाती,
झिलमिलाये जिससे सिर्फ़,
एक आँगन, एकही ज़िंदगी,
रुके एक किरन उम्मीद्की,
कुछ देरके लियेही सही,
किसीके लिए...

शाम तो है होनीही,
पर साथ लाये अपने
एक सुबह खिली हुई,
क़दम रखनेको ज़मीं,
थोड़ी-सी मेरे नामकी,
इससे ज़ियादा हसरतें नहीं!
किसीके लिए....

र्हिदय मेरा ममतामयी,
मेरे दमसे रौशन वफ़ा,
साथ थोड़ी बेवफाईभी,
ओढे कई नक़ाब भी
अस्मत के लिए मेरी,
था येभी ज़रूरी,
पहचाना मुझे?नही?
झाँको अपने अंतरमेही!
तुम्हें मिलूँगी वहीँ,
मेरा एक नाम तो नही!
किसीके लिए...."

"शमा", एक नकारी हकीकत!

जो मेरे अंतरमे है,
वो मेरा नही ....
मै जिसके अंतरमे ,
मेरा हुआ नही...
मै उसकी नही!
क्या खेल हैं जिंदगीके,
क्या रंग इस खिलौनेके
ताउम्र रहा ये खेला,
क्या पता,कैसा,
कब अंत होगा इसका?
सवाल पूछ रही
आपसे, देगा जवाब कोई?

2 comments:

'sammu' said...

क्या जबाब हो सकता है ? फिर भी ...

जिन्दगी ऐसे कटी
आहों में कोई बाँहों में कोई
तुम भी भरम, दुनिया भरम
कोई नहीं ना ही राहें कोई

जैसे भी जब भी बन पडी
दर पे तेरे गुजार दी
तुम भी तो क्या निभाओगे
हम ही करेंगे वादा कोई .


जलती रही शमा कोयी
के महफ़िल बनी सजी रहे
वरना कहीं ,आँगन कोई
तू भी संवारती कोई

अपनी ही रोशनी कोयी
भीतर उतार देख ले
तुझपे उधार था कोई ?
तुझपे उधार है कोयी ?

Asha Joglekar said...

कितनी आप बीतियाँ सुना गईं आप इस रचना में ।पर थोडी लंबी कम रखतीं तो अच्छा होता ।