बहता रहता हूं, ज़ज़्बातों की रवानी लेकर,
दर्द की धूप से ,बादल में बदल जाउंगा।
बन के आंसू कभी आंखों से, छलक जाता हूं,
शब्द बन कर ,कभी गीतों में निखर जाउंगा।
मुझको पाने के लिये ,दिल में कुछ जगह कर लो,
मु्ठ्ठी में बांधोगे ,तो हाथों से फ़िसल जाउंगा।
कहानी अपनी, पानी की ज़ुबानी
बात पूरी नहीं होगी अगर पूरा सच न लिखा जाये इस ख्याल से गज़ल के बाकी शेर भी आप सब की नज़र कर रहा हूं।उम्मीद है इसे भी आप लोगों की तवव्ज़ो मिलेगी।
_ktheleo at "Kavita"
(also at www.sachmein.blogspot.com)
2 comments:
ख़्यालात में दरिया सा फ्लो है!
@ Vinay,
Thanks.
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