Thursday, May 14, 2009

"शमा"को ऐसे जला गए...

गुलोंसे गेसू सजाये थे,
दामनमे ख़ार छुपाये थे,
दामन ऐसा झटक गए,
तार,तार कर गए ,
गुल सब मुरझा गए...

पलकोंमे छुपाये दर्द थे,
होटोंपे हँसीके साये थे,
खोल दी आँखें तपाकसे,
हमें बेनकाब कर गए,
बालोंसे गुल गिर गए.....

अपने गिरेबाँको लिए बैठे थे,
वो हर इकमे झाँकते थे,
बाहर किया अपने ही से
बेहयाका नाम दे गए,
गुल गिरके रो दिए....


वो तो मशहूर ही थे,
हमें सज़ाए शोहरत दे गए,
बेहद मशहूर कर गए,
लुटे तो हम गए,
इल्ज़ाम हमपे धर गए....

दर्द सरेआम हो गए,
चौराहेपे नीलाम हो गए,
आँखें बंद या खुली रखें,
इनायतोंसे आँखें झुका गए,
गेसूमे माटी भर गए...

बाज़ारके साथ हो लिए,
किस्सये-झूट कह गए,
अब किस शेहेरमे जाएँ?
हर चौखटके द्वार बंद हुए,
निशानों- राहेँ मिटा गए...

वो ये ना समझें,
हम अंधेरोंमे हैं,
तेज़ उजाले हो गए,
सायाभी छुप जाए,
"शमाको" ऐसे,जला गए....

1 comment:

mark rai said...

दामन ऐसा झटक गए,
तार,तार कर गए ,
गुल सब मुरझा गए......
bahut khub ....