Friday, May 1, 2009

माँ तेरा आँचल....

गर्दूं-गाफिल said... माँ तेरा आँचल कहाँ खो गया
तेरा लाडला अब तनहा हो गया

जीवन की दोपहरी में जलती रही
मेरे जीवन को उजला करती रही
उम्र की साँझ में जब अकेली हुई
थक कर भी मुझ पर निछावर रही
जिसकी गोदी में शीतल होता था मै
मेरी ममता का सागर कहाँ सो गया

नीड़ ममता का छोडा ,,छौना उड़ा
कौर जिसको खिलाये ,,सलोना मुड़ा
फिर भी देवालयों में ..बिसूरती रही
प्रार्थनाएं मेरे सुख की ही करती रही
जो लेकर बलैयां निखर जाता ..था
वो आरत का दीपक कहाँ खो गया

मेरी" नैहर" इस कहानीपे टिप्पणीके रूपमे "गाफिल" जीने ये रचना लिखी...बेहद शुक्रगुजार हूँ...पढ़ते, पढ़ते मेरी आँखें नम हो गयीं...बोहोत ही उमदा अल्फाज़ हैं....गाफील जी आप बेहतरीन लिखते हैं...

1 comment:

'sammu' said...

meree mamta ka aanchal kahaan kho gayaa ??