Friday, May 8, 2009

क्यों ये रंग दिखाए?

किस्मत ने क्या रंग दिखाए!
देख, परख हम दंग रह गए!
सुना था बड़े खेल खेलती है,
कब लगाई शर्त उससे,
हम वैसेभी थके हुए थे,
फिर क्यों ये रंग दिखाए?

ज़रूरी तो नही था,
सरेआम हराती हमें,
सरेआम बनाती तमाशा,
बेखब्र मूँदके पलकें,
हम तो हारे बैठे थे,
क्यों ये तमाचे लगाये?

कब कहा उससे,
कब दी चुनौती उसे?
कौनसे सबक थे,
जो हम सीखे नही थे?
इतने तो पागल नही थे,
देखे हुए रंग, फिरसे दिखाए!

उठ, सीख "शमा" कुछ सीख
जो याद रहे अगले जनमतक...!

3 comments:

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

प्रिय शमा जी,
आप के Profile पर दी हुयी link इस Blog पर नहीं लाती है। खैर सुन्दर रचना के लिये बधाई।
मेरे Blogg पर आने और सुन्दर शब्दों से तारीफ़ करने के लिये तहे-दिल से शुक्रिया.

आपने जो प्रस्ताव रखा है,उससे बढ्कर मेरी रचना को क्या सम्मान मिल सकता है?

पर इस बारे में मेरी राय में, मेरी रचनायें पहाडी अल्लहड नदी की तरह हैं इन्हें बहते रहने देना ही ठीक है.जब तब बहती नदी के किनारे जाकर बहते पानी के छीटें जो मज़ा देते है,सुराही के पानी के आधे अधूरे छपके में कहां.

आप क्यों नदी के पानी को सुराही में भरना चाहतीं हैं. ऐसा करने से उसका स्वाद और ताज़गी दोनो जाती रहेगी.

हां गर आप चाहतीं हैं कि आप के Blogg के पाठक भी मेरी लेखन की style का मज़ा लें और मे्री होसलाअफ़्ज़ाई हो,तो आप मुझे अपने Blogg पर लिखने का right दें सकतीं हैं,for which you have do small changes in your blogger 'Dashboard'.

with tons of regards, and thanks.
April 29, 2009 3:17 PM
April 29, 2009 7:55 AM

Yogesh Verma Swapn said...

sunder rachna.

'sammu' said...

sikhte ho ki tum sikhate ho ?
bevazah khwab kyoon dikhate ho ?
jeet kar haar sab naheen kahate ?
jeet ko haar bhee banate ho ?

jaane kitna to yaad aate ho !

AAP HEE KEE KAVITA KA BHAV TRANSLITERATION !