Sunday, November 29, 2009

uddhvji: ek kahani....?.....aur...aurat kee

uddhvji: ek kahani....?.....aur...aurat kee
बच्चे का मोह, उसका भविष्य माँ को सारी ताकत देता है......हाँ क्षणांश की व्यथा(जो कीती भयानक होती है!) बहुत कुछ कर गुजरने पर विवश करती है! आग से जलना, या आत्महत्या कोई खेल नहीं........

7 comments:

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

वाह! कमाल की अभिव्यक्ति!बिना कहे रह नहीं पाऊगां, कि,(मेरा अपना ही एक शेर)

खुदकशी करने वालों को भी आओ माफ़ हम कर दे,
जीते रहने का कोई रस्ता न नज़र आया होगा"
वाह! एक बार फ़िर!

मनोज कुमार said...

मार्मिक है , दिल को छूती हुई, बहुत अच्छी रचना।

वाणी गीत said...

मेरी व्यक्तिगत राय थी , आज भी है ' मरने से पहले बच्चों का ख़याल तक नही आया ,तो अब..?...लिपट जाती जलती हुई ही उस आदमी से और साथ ले के जाती उसे भी...
बिलकुल ऐसा ही करना चाहिए था .....मगर बात अटकती है वहीँ ...बच्चों पर आकर ...बच्चों का क्या ...?
ऐसे लोग बच्चों को जन्म ही क्यों देते हैं ...?

vandana gupta said...

rashmi ji
chand shabdon mein hi jeevan ke yatharth ko utar diya........badhayi

दिगम्बर नासवा said...

ये तो जीवन की रीत है ...... शशक्त रचना है .....

रश्मि प्रभा... said...

yah indu puri ji ke dwaara likhi gayi hai......

Anonymous said...

वाणी गीत जी आपकी बात पढ़ कर दुःख हुआ 'ऐसे लोग बच्चो को जन्म ही क्यों देते हैं ?'
शायद इस उम्मीद मे कि बच्चों का मोह,प्यार,उनके भविष्य की चिंता जिम्मेदारियों का अहसास करा देता है
पति ना सही एक achchha पिता तो वो इंसान बन ही जाए और....एक बच्चे के सहारे औरत अपना जीवन बीता ही लेती है
छोटे शहरों की मद्यम वर्गीय महिलाओ का जीवन आज भी बहुत काँटों भरा है
एक को छोड़ कर दूसरा कर लेना खेल भी नही,जीवन गुड्डे गुडिया का खेल नही
हाँ उसने जो रास्ता चुना वो किसी भी स्थिति मे सही नही था ,न है