खोयीसी बिरहन जब
उस ऊँचे टीलेपे
सूने महल के नीचे
या फिर खंडहर के पीछे
गीत मिलन के गाती है,
पत्थर दिल रूह भी
फूट फूट के रोती है।
हर वफ़ा शर्माती है
जब गीत वफ़ाके सुनती है।
खेतोमे,खालिहानोमे
अंधेरोंमे याकि
चांदनी रातोमे
सूखे तालाब के परे
या नदियाकी मौजोंपे
कभी जंगल पहाडोंमे
मीलों फैले रेगिस्तानोमे
या सागरकी लहरोंपे
जब उसकी आवाज़
लहराती है,
हर लेहेर थम जाती है
बिजलियाँ बदरीमे
छुप जाती हैं
हर तरफ खामोशी ही
खामोशी सुनायी देती है।
मेरी दादी कहती है
सुनी थी ये आवाजें
उनकीभी दादीने॥
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9 comments:
wahi geet yugon-yugon tak dohraye jate hain.........bahut hi achhi rachna
BIRHN KE VO GEET AAJ BHI SUNAI DETE HAIN TO DIL MEIN GHAAV KAR JAATE HAIN .... ACHHA LIKHA HAI ..
बहुत ही दर्द भरा गीत है यह , बहुत सुन्दर……………
रचना मर्मस्पर्शी है और मानसिक परितोष प्रदान करती है।
"bees saal baad" yaad aa gayi.
ये सुनाई देता रहा है और रहेगा भी.....
सुन्दर रचना.....
yugo yugo tak bahta hai dard....
janta hai koi hamdard..sunder
वाह! सुन्दर रचना!
bahut vadhia....
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