पीछेसे वार मंज़ूर नही...
अँधेरों इसके पास आना नही,बुझनेपे होगी,"शमा"बुझी नही,
बुलंद एकबार ज़रूर होगी,
मत आना चपेट में इसकी,
के ये अभी बुझी नही!
दिखे है, जो टिमटिमाती,
कब ज्वाला बनेगी,करेगी,
बेचिराख,इसे ख़ुद ख़बर नही!
उठेगी धधक , बुझते हुएभी,
इसे पीछेसे वार मंज़ूर नही!
कोई इसका फानूस नही,
तेज़ हैं हवाएँ, उठी आँधी,
बताओ,है शमा कोई ऐसी,
जो आँधीयों से लड़ी नही?
ऐसी,जो आजतक बुझी नही?
सैंकडों जली,सैंकडों,बुझी!
हुई बदनाम ,गुमनाम कभी,
है शामिल क़ाफ़िले रौशनी ,
जिन्हें,सदियों सजाती रही!
एक बुझी,तो सौ जली॥!
चंद माह पूर्व की रचना है..
6 comments:
शमा बुझ गयी अगर
तो अँधेरा हो जायेगा
.................
इसे याद रखना इस रौशनी में
ज़िन्दगी पानेवालों
दिखे है, जो टिमटिमाती,
कब ज्वाला बनेगी,करेगी,
बेचिराख,इसे ख़ुद ख़बर नही!
उठेगी धधक , बुझते हुएभी,
इसे पीछेसे वार मंज़ूर नही!
Yahi swabhimaan kayam rahana chahiye......
Peechhe vaar kayar karte hai ...
Gahare bhav liye...
Badhai
आस्था और आशावादिता से भरपूर स्वर इस नज़्म में मुखरित हुए हैं ।
अंधेरों के खि़लाफ़ खोला गया आपका मोर्चा सराहनीय है।
इच्छा-शक्ति ही विजय है
कहा है ग़ालिब ने
‘‘शम्आ हर रंग में जलती है सहर होने तक’’
LAJAWAAB RACHNA HAI ...
सैंकडों जली,सैंकडों,बुझी!
हुई बदनाम ,गुमनाम कभी,
है शामिल क़ाफ़िले रौशनी ,
जिन्हें,सदियों सजाती रही!
एक बुझी,तो सौ जली॥!
sundar rachna ye shama raushan rahe .
Post a Comment