वाह! सुन्दर!बिल्कुल जैसे कि,"कौन आया है यहां कोई न आया होगा,मिरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा." -बशीर बद्र
इस रचना ने मन मोह लिया।
आहट सी कोई आए तो लगता है की तुम हो .....बहुत पहले सुनी इस ग़ज़ल की याद करा दी आपने .... बहुत उम्दा नज़्म लिखी है आपने ......
किसीने आना था नही,हवा फिर भी गुनगुनाती रही..दूर से इक आहट आती रही.. और एक शायर ने पूछा है...ये कौन आ गई दिलरुबा महकी महकी ?ळवा महकी महकी , फ़ज़ा महकी महकी ?
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4 comments:
वाह! सुन्दर!
बिल्कुल जैसे कि,
"कौन आया है यहां कोई न आया होगा,
मिरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा."
-बशीर बद्र
इस रचना ने मन मोह लिया।
आहट सी कोई आए तो लगता है की तुम हो .....
बहुत पहले सुनी इस ग़ज़ल की याद करा दी आपने .... बहुत उम्दा नज़्म लिखी है आपने ......
किसीने आना था नही,
हवा फिर भी गुनगुनाती रही..
दूर से इक आहट आती रही..
और एक शायर ने पूछा है...
ये कौन आ गई दिलरुबा महकी महकी ?
ळवा महकी महकी , फ़ज़ा महकी महकी ?
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