May be little late for anniversary of 26/11 notwithstanding रचना आप के सामने है.(थोडी पुरानी सही पर बात एक दम खरी है!) :
इस तीरगी और दर्द से, कैसे लड़ेंगे हम,
मौला तू ,रास्ता दिखा अपने ज़माल से.
मासूम लफ्ज़ कैसे, मसर्रत अता करें,
जब भेड़िया पुकारे मेमने की खाल से.
चारागर हालात मेरे, अच्छे बता गया,
कुछ नये ज़ख़्म मिले हैं मुझे गुज़रे साल से.
लिखता नही हूँ शेर मैं, अब इस ख़याल से,
किसको है वास्ता यहाँ, अब मेरे हाल से.
और ये दो शेर ज़रा मुक़्तलिफ रंग के:
ऐसा नहीं के मुझको तेरी याद ही ना हो,
पर बेरूख़ी सी होती है,अब तेरे ख़याल से.
दो अश्क़ उसके पोंछ के क्या हासिल हुया मुझे?
7 comments:
behatareen.
'Kuchh naye zakhm mile hain..'kya baat hai....Aapki behtareen rachnaon me se ye ek hai!
लिखता नही हूँ शेर मैं, अब इस ख़याल से,
किसको है वास्ता यहाँ, अब मेरे हाल से.
बहुत खूब शेर लिखे हैं आपने.
bahut hi gambheer khyaal
दो अश्क़ उसके पोंछ के क्या हासिल हुया मुझे?
खुश्बू नही गयी है,अब तक़ रूमाल से....
कमाल का शेर है ........ भाई वाह निकल गया मुँह से पड़ते ही ...............
मासूम लफ्ज़ कैसे, मसर्रत अता करें,
जब भेड़िया पुकारे मेमने की खाल से.
क्या बात कही है ....!!
दो अश्क़ उसके पोंछ के क्या हासिल हुया मुझे?
खुश्बू नही गयी है,अब तक़ रूमाल से....
आंसुओं की खुशबू ...नया ख़याल है ....!!
आप सबों की मेहरबानी जो मेरे जज़्बात तक पहुचें और प्रशंसा की,लिखना सकारत हुआ. स्नेह बनाये रखें!
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