वो राह,वो सहेली...
पीछे छूट चली,
वो राह वो सहेली,
गुफ्तगू, वो ठिठोली,
पीछे छूट चली...
ना जाने कब मिली,
रात इक लम्बी अंधेरी,
रिश्तों की भीड़ उमड़ी,
पीछे छूट चली...
धुआँ पहेन चली गयी,
'शमा' एक जली हुई,
होके बेहद अकेली,
पीछे छूट चली...
ये कारवाँ उसका नही,
कोई उसका अपना नही,
अनजान बस्ती,बूटा पत्ती,
बिछड़ गयी कबकी,
वो राह,वो सहेली...
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14 comments:
धुआँ पहेन चली गयी,
'शमा' एक जली हुई,
होके बेहद अकेली,
पीछे छूट चली...
ये कारवाँ उसका नही,
कोई उसका अपना नही,
अनजान बस्ती,बूटा पत्ती,
बिछड़ गयी कबकी,
वो राह,वो सहेली...
bahut hi khoobsurat rachna ,jo kai kadam peechhe khich le gayi ,doston ke sang bitaye palo par likhi meri rachna yaad aa gayi ,ise padhte huye ,
वो राह वो सहेली ...पीछे छूट चली ...
अंजन बस्ती बूटा पट्टी ...बिछड़ गयी कबकी ....
इतना अकेलापन तन्हाई है कविता में कि मन उदास होने लगा है ...
ब्लॉग के विस्तृत आसमान में इस तन्हाई की कहाँ कोई जरुरत है ...!!
अच्छी लगी रचना। बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
सीधी... सरल... सरस... सुंदर... अभिव्यक्ति पढ़कर मन हर्षित हुआ.
ना जाने कब मिली,
रात इक लम्बी अंधेरी,
रिश्तों की भीड़ उमड़ी,
पीछे छूट चली...
अच्छी रचना है ....... इक दिन तो सब कुछ पीछे छूट जाता है ..... अकेले ही चलना है .......
आपको नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ ...........
जब लगता है मंजिलें,रास्तें खामोश हैं.....तो कुछ आहटें साथ होती हैं
Great! Ye karwan uaska nahi......
Waah!
rachna dilko bha gai.
सुन्दर मनोभाव !
आपके ' परिधान ' और ' धरोहर ' देखने को नहीं मिलते . ' आमंत्रितों ' के लिए हैं . क्या आमंत्रित हो सकते हैं ? हम भी ?
sundar panktiyan !! khas pasand aayi antim panch panktiyan !
aapko nav warsh ki hardik shubhkamnaye !
sundar panktiyan !! khas pasand aayi antim panch panktiyan !
aapko nav warsh ki hardik shubhkamnaye !
अच्छी लगी कविता !
इस सुन्दर रचना के लिए बहुत -बहुत आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना लिये हुये बेहतरीन प्रस्तुति के लिये, बधाई के साथ नववर्ष की शुभकामनायें ।
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