Friday, December 4, 2009

दो क्षणिकाएँ..


१)बहारों के लिए...

बहारों के लिए आँखे तरस गयीं,
खिज़ा है कि, जाती नही...
दिल करे दुआए रौशनी,
रात है कि ढलती नही...

२)शाख से बिछडा...

शाखसे बिछडा पत्ता हूँ कोई,
सुना हवा उड़ा ले गयी,
खोके मुझे क्या रोई डाली?
मुसाफिर बता, क्या वो रोई?

3 comments:

Yogesh Verma Swapn said...

sunder abhivyakti

वाणी गीत said...

रात ढलती नहीं ....शाख के टूटे पत्ते का ग़म .. जरुर महसूस करती होगी डाली....!!

vandana gupta said...

बहारों के लिए आँखे तरस गयीं,
खिज़ा है कि, जाती नही...

bahut hi gahre bhav.........bahut sundar.