Saturday, November 21, 2009

रुत बदल दे !


पार कर दे हर सरहद जो दिलों में ला रही दूरियाँ ,
इन्सानसे इंसान तक़सीम हो ,खुदाने कब चाहा ?
लौट के आयेंगी बहारें ,जायेगी ये खिज़ा,
रुत बदल के देख, गर, चाहती है फूलना!
मुश्किल है बड़ा,नही काम ये आसाँ,
दूर सही,जानिबे मंजिल, क़दम तो बढ़ा!

10 comments:

मनोज कुमार said...

शानदार और मनमोहक।

Yogesh Verma Swapn said...

bahut khoob.

'sammu' said...

बहुत दिनों के बाद आपकी कविता में उमंग , उत्साह दिखा .
खुशी हुयी !

पूनम श्रीवास्तव said...

Sundar abhivyakti---.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वाह!!! ये हुई न बात. नई उम्मीद जगाती कविता. बहुत सुन्दर.

mark rai said...

मुश्किल है बड़ा,नही काम ये आसाँ,
दूर सही,जानिबे मंजिल, क़दम तो बढ़ा!
.inspirational.....

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

चलो कदम तो बढाओ बहारें रास्ते बुहारेंगीं,
चलो तो सही जु्टा के हिम्मत मंज़िलें खुद तुम्हॆ पुकारेंगी!

ज्योति सिंह said...

hamare khyaal kitne behtrin hote hai ,magar rang iske fike ,aesi hi umeed har dilo me basar ho ,khoobsurat rachna .
पार कर दे हर सरहद जो दिलों में ला रही दूरियाँ ,
इन्सानसे इंसान तक़सीम हो ,खुदाने कब चाहा ?
aamin ,us khuda ki khwahish ko kash, raste de paaye hum

Dr.R.Ramkumar said...

पार कर दे हर सरहद जो दिलों में ला रही दूरियाँ ,
इन्सानसे इंसान तक़सीम हो ,खुदाने कब चाहा ?

muhim adhura na rahe inshaallaah!
aage hi aage kooch hona chhahiye..

bagwanee ke liye ek naya masala ya khad hai ^ vanaspatiyon ka sondaryashastra..* jayen
http://drramkumarramarya.blogspot.com,
Aur ghazal ka shaouk ho to mere azeez shayer kumar zahid ko padhein
ek nayi ghazal aapka intazar kar rahee ha..please click
http:kumarzahid.blogspot,com

दिगम्बर नासवा said...

पार कर दे हर सरहद जो दिलों में ला रही दूरियाँ ..

aisee dooriyon ko tod dena chaahiye .... achee rachna ...