अए महताब क्या है इरादे तेरे?
आज तू है पूरे शबाबपे ,
आज हम ना आएँगे,
तुझे देखने, छतपे अपने...
जान गए हैं,इरादे तेरे...
के ये रौशनी तेरी,ये चाँदनी ,
है इनायत किसी आफताबकी,
जान गए के, ये है रौशनी,
परायी, है ये उधारकी,
क्यों डाले डोरे रानीपे रातकी,
क्यो पड़ता है रौशन चेहरा तेरा,
आतेही आफताबके, सफ़ेद-सा?
इतराए है , किसी मुबारकबाद्से?
जा, तू छुप जा,पीछे बदरियोंके...
हमने शमादानी जलाये रखी,
जिस चांदनीमे जली बिरहनें,
कह दे जाके उन्हें तेरे ग़लत इरादे,
सदियों छलता रहा है,तू इन्हें,
जा, माँग माफी, उनसे,
सर झुका दे क़दमोंमे उनके...
विश्वाश कर लेते तुझपे
गर उस चौदवीकी रातमे,
हम अपने प्रीतमसे होते मिले,
छीन लिए वो लम्हें तूने,
एक और मोहलत क्या मिले?
अब नही ख्वाहिश तेरी,
जिनको होगी वो तकें तुझे,
हम खोये हैं उन्हीमे,
जो नही पास हमारे,
हम तो जल चुके है कबके....
उसी ठंडी उधारकी जलनमे,
नही है लगी, ऐसी जो बुझे,
अब सच्चाई जानके
क्यों सताए है,जा पास उन्हींके
जा पास उन्हींके ,जो कायल तेरे...
तूने तो दूरियाँ बढाई, बीछ में,
दो प्यारमे उलझे दिलोंमे,
तोडे ऐसे नाज़ुक रिश्ते,
फ़िर न कभी ना बधेंगे,
तू तो झूटा बड़ा सबसे....
(जिसकी यादमे ये लिखी,
नही जानती, के
ये उनतक कभी,
पोहोंचेगी भी,
या नही, वो पढेंगे भी ,
आस मिटती नही,
लिखती जा रही ,
ये कलाई रुकती नही...
यादमे जिसके ये,
"शमा" ना जल पाती,
ना बुझही पाती)
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3 comments:
sabse pahle to aapne mujhe sujhaaw diya usake liye..shukriya....aapke kahe anusaar galti sudhaarne ki koshish kar li....aage bhi aap sujhaaw deti rahna.....
aapki kavitaaon se bahut kuchh sikhne ko milta hai..
vo mahtaab to kudarat ke siwaa kuch bhee naheen
ugata hai gair kee khaatir kinheen ishaaron se
unko kyaa kahiye jinhen hotaa hai nasheeb magar
vo kinheen dard kee dookan ke ehsan mahaj ....
dekhte hain ki ye mahtaab unhen fabta hai .....
अब नही ख्वाहिश तेरी,
जिनको होगी वो तकें तुझे,
हम खोये हैं उन्हीमे,
जो नही पास हमारे,
हम तो जल चुके है कबके....
wah kya dard hai aur kitna khoobsoorat upaalamb aur us se bhi sundar kisi ki yaad main itnaa kho jaana ki baaki sab berang, benoor aur bematlab lagne lage . ye sab sachche pyaar main hi mumkin hai. magar ye bhi sach hai ki khaahish adhoori rahe tabhi uski tees zindagi bhar rahti hai. aakhir ghalib ne bhi kahaa hai-
koie mere dil se poochhe tere teer-e-neemkash ko,
ye khalish kahaan se hoti jo jigar ke paar hota.
isliye khaahishon ko kabhi marne nahi dena. dunia bahut chhoti hai kya pataa kab kahaan kis mod pe fir mulaakat ho jaaye .............
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