Friday, May 29, 2009

ज़ख्म न छेड़ें...!

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

शमा जी
बहुत दिन बाद इधर आ पाया । आपकी टिप्पणिया अच्छी लगती हैं । आपसे कोई अप्रसन्न हो नही सकता । इतनी सहजता और सरलता बड़ी तपस्या से मिलती है । आपके झूठ वाला संस्मरण रोचक भी है और प्रेरणास्पद भी ,हम भी खूब हँसे आपकी उस स्थिति की कल्पना करके । एक और पुरानी लिखी गजल आपको पढ़ते हुए याद आयी । शायद अच्छी लगे ।




जख्म न छेड़े आँसू हैं बेताब छलकने लगते हैं

सूखे फूल किताबों में ही रख्खे अच्छे लगते हैं



दरिया ऐ गम इन आंखों से किसने बहते देखा है

बड़ी उम्र वाले भी दुःख में मासूम से बच्चे लगते हैं



वक्त नहीं मिलता यारों को जीवन के जंजालों से

वे सच्चे होकर हंसते हैं तो कितने अच्छे लगते हैं



नही चाहिए किसी की दौलत न कोई दे पाया है

प्यार के दो बोल अय गर्दूं कितने मीठे लगते हैं



बिना इबादत इमारतें सब मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारे

जिनको नूर ऐ खुदा मिला उनको सब एक ही लगते हैं

5 comments:

Vinay said...

बहुत ही बढ़िया ख़्यालात

Yogesh Verma Swapn said...

wah shama ji, gafil ji ko bhi kheench liya apne blog par, badhai. gafil ji ki rachna to lajawaab hai hi.

Pradeep Kumar said...

shama ji ghazal post kar rahaa hoon -

अगर ज़िन्दगी में कोई ग़म नहीं है ,
तो ख़ुशी ही ख़ुशी भी जीवन नहीं है.
मैं इंसान उसको भला कैसे कह दूं
किसी के लिए आँख गर नम नहीं है.
ग़म के बिना कोई जन्नत भले हो.
वो जीवन नहीं है वो जीवन नहीं है .
बेशक मोहब्बत है अहसास दिल का,
न होगा जहां कोई धड़कन नहीं है .
कहाँ तक छुपायेगा इंसान खुद को ,
जो फितरत छुपा ले वो दर्पण नहीं है .
उठो एक कोशिश तो फिर करके देखो,
न हल हो कोई ऐसी उलझन नहीं है.
जो अपनों ने मुझको दिए अपने बनकर ,
उन ज़ख्मों को भर दे वो मरहम नहीं है .
कहाँ तक ज़माने के कांटे बटोरूँ ,
जो सब को छुपा ले वो दामन नहीं है.
ग़म-औ- ख़ुशी का संगम है दुनिया ,
कोई गर न हो तो ये जीवन नहीं है.
दिल की तमन्ना बयाँ कर ही डालो,
सुनके न पिघले वो नशेमन नहीं है .
मोहब्बत है गर बयाँ भी वो होगी ,
ये दिल में छुपाने से छुपती नहीं है.
बहुत बातें मुझको करनी हैं तुमसे ,
कि एक बार मिलना काफी नहीं है .
अँधेरा बढ़ा तो फिर है हाज़िर प्रदीप .
जो रोशन न हो ऐसा गुलशन नहीं है .

Asha Joglekar said...

नही चाहिए किसी की दौलत न कोई दे पाया है

प्यार के दो बोल अय गर्दूं कितने मीठे लगते हैं
बहुत सुंदर ,शमाजी । आपका अलग से कविता का ब्लॉग भी है जानकर अच्छा लगा ।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

waah...waah...waah.