ना पास आयें हैं,
ना दूर जाएँ हैं,
वो दुश्मने जाँ मेरे,
है जाँ निसार जिनपे
ना पास आए हैं
ना दूर जायें हैं!
क्या खूब निभाएँ हैं,
दिनमे रुलाये हैं,
सोयें तो ख्वाब देखें,
वो हर रात जगाएँ हैं!
ना पास आए हैं,
ना दूर जायें हैं.....
ढूँढे जिगर जिसे,
वो यूँ तीर चलाये हैं,
के जिगर चीर जाए,
फिरभी वहीँ समाये,
ना पास आएँ हैं,
ना दूर जायें हैं...
उम्र की बात छोडिये,
लमहेकी बात छेडिये ,
लबोंपे हँसी उनके,
मेरी जान जाए है,
ना पास आए हैं,
ना दूर जाएँ हैं...
ज़ुल्म है, ये ज़ुल्म है,
जिसे कहेँ प्यार है,
क्यों तडपाये हैं?
इस क़दर सताए हैं?
ना पास आए हैं,
ना दूर जाए हैं....
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1 comment:
शमा जी,
अच्छा कलाम हैं।
मैं एसे कहता हूं,
"दूरियां खुद कह रहीं थीं, नज़दीकियां इतनीं न थीं.
हालाते ताल्लुकात में बारीकियां इतनी न थीं।"
पूरी गज़ल फ़िर कभी।
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