ये रचना, "Leo" जी के ख़ातिर पोस्ट कर रही हूँ...
उनकी एक रचना पढने के बाद मुझे मेरे अल्फाज़ याद आ गए..उनकी रचना से कोई तुलना नही क्योंकि, वो अतुल्य हैं...
"leo" सही मायनेमे रचनाकार हैं...और मुझे किसी "छंद" का ज्ञान नही...!
बेलगाम,तूफानी दरिया था,
कश्तीको उसमे बहा दिया,
सँग मँझधार, भँवर मिला !
डरे-से साहिलोंको देखा,
मूँदी आँखें,पतवार फेंका,
के, समंदर बुला रहा था!
उफ़ !क्या गज़ब ढा गया !
थी साज़िश, या तमाशा!
बहता दरिया, सूख गया!
साहिल,ना समंदर मिला,
दूर खडा, बेदर्द किनारा,
देख मुझे, मुस्काता रहा!
आँखोंसे सैलाब माँगा,
हाथ उठाके, की दुआ,
खुदाको मंज़ूर ना हुआ!
सुकूँ मिला,न किनारा,
बस दश्तो सेहरा मिला,
खुदाया! ये क्यों हुआ?
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10 comments:
शमा जी,
यह बंद अच्छा बना है :-
आँखोंसे सैलाब माँगा,
हाथ उठाके, की दुआ,
खुदाको मंज़ूर ना हुआ
दूसरे बंद में ड़रे से साहिलों के देखा एक नई उपमा है, अच्छी लगी।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बेलगाम दरिया में
कश्ती हैं जो उतारते
डरते नहीं सजा से वो
मंजिल हैं बस संवारते
तूफां है हर साजिश जहाँ
उसमे उतर के देखता ?
फिर क्यूं है कोई गिला तुझे
खुदा नाखुदा पुकारते
शमा जी,
आपकी रचना सुन्दर है।
मेरी प्रशंसा अतिशोक्ति है।
पाठक आम तौर पर लेखन शैली से identify करने लगते हैं।
मै किसी दर्द भरे अनु्भव से गुज़रे बिना भी उसे मह्सूस करता हूं।
शायद ईश्वर की दया है।
Keep reading and writing.Happy Blogging.
sarahniya rachna ke liye shama ji , aapko badhai.
jai ho,balike. narayan narayan
"sammuji", aaki tippaniyan baqayda mil rahee hain...tahe dilse dhanyawad! Aapko khoj nahee pa rahee ye doosari baat!
Aapki rachnayen, jo tippaneeke roopme aap likhte hain, bohot sundar hoti hain, manse likhi huee hotee hain...lekin, kabhi,kabhi aisa hota hai,ki, mai unka arth nahee samajh patee...
Ekbaar kisee" Samena" ka blog khula...lekin, uspe kewal "by invitation" pravesh tha..! Baadme profile uplabdh nahee hua!
Aapkne jawab me likhi akhree panktiyon ka arth mai nahee samajh paayi...kshama karen!
I mean "aapki"..galateese "aaki" type ho gaya..!
टिप्पणियां ' बेकायदा . मिल रही हैं ?
समझ नहीं पाया .मेरी टिप्पणियां आप की प्रस्तुति की सराहना में ही हैं.यहाँ जो लिखा उसका भी तात्पर्य उन विचारों को एक साहसिक ' पोसिटिव ' आयाम के तहत कि साहस का भी अपना मकसद
होता है और फिर तकलीफें भी आयें तो हिम्मत से मुकाबला हो . नाखुदा =नाविक . तो ऐसे में पुकारना हो तो गिला क्यों ? बस .
हमारे ब्लॉग का उद्देस परिचय में है ही .देख लें .
"Baaqayadaa"( lagataar) mil raheen hain...maine "beqaayada" nahee kaha...!Aur aapki tippaneeke taurpe likhi gayeen rachnayen bhee achhee aur aksar sakaratmak hee hain!
Haan, "naakhuda"ka matlab to pata tha..khevenhaar..haina?
Shanka nirsan ke liye dhanywad.
बहुत बढिया । बधाई ।
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