मै सपना नही हूँ,
जिसकिभी हूँ,
मै हीर हूँ,
मै हक़ीक़त हूँ
माज़ीकी हूँ,
या मेरे आजकी,
तू राँझा ना सही,
मै बंदिनी सही,
मै हीर हूँ,हीर हूँ,
ज़मानेने नकारी हुई,
एक हक़ीक़त हूँ...
हीर हूँ, मै हीर हूँ,
तय कर अपनी ,
ज़िंदगी, चाहे जैसेभी,
मेरा इख्तियार नही,
के मै तेरी होकेभी
निगाहोंमे तेरी नही,
तेरी नही, किसीकी नही...
फिरभी हूँ हीरही, हीरही....
राहोंमे मिले हरयाली,
तू चले फूलोंकी,
बिछी कालीनपे,
मै रेगिस्तानकी
बाशिन्दी हूँ,
सदियोंकी प्यासी,
इतेज़ारमे इक बूंदकी,
जो मुझपे बरसती नही,
इक पुरानी-सी सही,
मै हीर हूँ, मै हीर हूँ...
इल्ज़ामे बेवफाई,
मेरा मुक़द्दर सही,
हक़ीक़त बदलेगी नही,
हीर थी,हीर हूँ,
मै हीरही रहूँगी....
तू मेरा रांझा नही,
कोई फ़र्क़ नही,
मै हूँ हीरही,
ना करे इंतज़ार कोई,
क़यामत की बात नही,
चंद रोज़भी नही,
ना सही, गिला नही,
जान गयी हूँ,
तेरी मजबूरी सही,
तू रांझा नही,
बिखर, बिखरकेभी,
मेरा नाम लिखेगी,
वक्त की सियाही,
ना पढ़े कोई,
मै हीरही रहूँगी,
के मै हीर थी,
मै नही बदलूँगी....
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7 comments:
प्रिय शमा जी,
पहले तो सुन्दर रचना के लिये बधाई.
आप ने शिकायत की थी कि जिस गज़ल का लिन्क मैं ने comments में दिया था वो आप को नहीं ,मिली मैं वो तीन गज़ल के शेर यहां लिखे देता हूं, शाय्द आप और आप्के blog के पाठकों को पसंद आयें.
मैं तुम्हारा नहीं हूँ ,ये बात तो मैं भी जानता हूँ.
मेरी तकलीफ ये है कि, ये बात तुम कहते क्यों हो.
ये तमाम ज़ख्म तो मोहब्बत में मैंने पाए हैं,
अजीब शक्स हो तुम, इस दर्द को सहते क्यों हो.
तेरी यादों पे जब मुझे कोई इख्तियार नहीं,
ये बताओ के फिर तुम मेरे दिल में रहते क्यों हो .
राहोंमे मिले हरयाली,
तू चले फूलोंकी,
बिछी कालीनपे,
मै रेगिस्तानकी
बाशिन्दी हूँ........
very nice...yahan samvedanshilta jhalkti hai...
aapke comment aur sujhaaw ke liye shukriya...
हीर हो
हरि हो
कविताओं की
भावनुमा परी हो।
ब्लॉगवाणी से
अभी तक क्यों
नहीं जुड़ी हो।
शमा जी यदि आप अपना ईमेल पता दें
तो आपके ब्लॉग को ब्लॉगवाणी से
जोड़ने की प्रक्रिया पूरी कर दें।
मेरे बारे में संभवत: आप जानती हों
पर मैंने आपको विजय कुमार सप्पाति जी की
हास्य कविता की टिप्पणी में पाया है।
तेरी मजबूरी सही,
तू रांझा नही,
बिखर, बिखरकेभी,
मेरा नाम लिखेगी,
वक्त की सियाही,
ना पढ़े कोई,
मै हीरही रहूँगी,
के मै हीर थी,
मै नही बदलूँगी....
bhagwaan kare aap heer hi rahein .
bahut khoob likhaa hai.
ek aagrah hai wartani par bhi gaur karein.
jaise बिखरकेभी isko bikhar ke bhi likhti.
मैं ही रही रहूंगी ! मैं ही रही रहूंगी !
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