चाँद भी है चाँदनी भी...,
है कायनात बीमार-सी,
कहीँ रौशनी नही....
कहीँ उसका रहगुज़र नहीं...
खिली है रानी रातकी,
महक मेरी साँसोंमे नहीं,
ना जानूँ, किसकी,
रूह है महकी हुई?
क्यों हूँ इतनी अकेली?
के ख़ुद अपने साथ नहीँ?
सारा जहाँ है सामने,
हदे निगाह्तक, कोई मेरा नहीँ....
हदे निगाह्तक,मै किसीकी नही,
बुलाता हैं मुझे कोई,
क्यों, येभी पता नहीँ,
जानती हूँ , वो मेरा नहीँ...
के मै हूँ इतनी अकेली,
के मै हूँ, किसमे खोयी हुई,
जो ना हुआ मेरा कभी,
क्यों उसे भुला सकती नहीँ ?
क्यों अकेली जी सकती नहीँ?
क्यों हैं साँसें उखड़ी हुई?
क्यों जान जाती नहीँ?
क्यों है किसीमे अटकी हुई?
क्यों कोई मेरा नहीँ?
ये क्यों के मै किसीकी नही?
है वो नाराज़ मुझसे,
वजेह तक पता नही....
ये जहाँ रास आता नहीँ,
अकेलापन मुझे भाता नहीँ...
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4 comments:
वो ना सम्झा है नासमझेगा कोयी भी बात मेरी
वह समझता है कि हर्दम प्यार मे कोयी कमी है ,
""क्यों अकेली जी सकती नहीं"" ,""अकेला पन मुझे भाता नहीं"" के मैं हूँ इतनी अकेली "" , हदे निगाह तक मैं किसी की नहीं ,कोई मेरा नहीं "" ""क्यों हूँ इतनी अकेली ""इत्तेफाकन एक शेर याद आगया है ""इस घर की देख भाल को तन्हाईयाँ (( शायर ने बीरानियाँ शब्द प्रयोग किया है ))तो हैं ,जाले हटा दिए तो हिफाज़त करेगा कौन ""आपकी रचना बेहद अच्छी है /तन्हाई का अच्छा चित्रण किया है /भावुक, कविता पढ़ कर जगजीतसिंह की गाई गजल के वह बोल भी याद आये "आईना देख के तसल्ली हुई ,शायद इस घर में (मुझे )जानता है कोई और उन्ही की गाई गजल वह भी याद आई """"कौन आएगा यहाँ ?कौन आया होगा ? मेरा दरवाज़ा हवाओं ने बजाया होगा ""
क्यों अकेली जी सकती नहीँ?
क्यों हैं साँसें उखड़ी हुई?
क्यों जान जाती नहीँ?
क्यों है किसीमे अटकी हुई.....
very nice...
sunder rachna. dard se bhari, tanhai men doobi. wah.
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