Tuesday, November 17, 2009

एक लड़की



एक लड़की -
हिदायतों, समझौतों का प्रतिरूप होती है
हँसने, बोलने, चलने मे
उसकी संरचना साथ होती है....
रातें, सुनसान रास्ते
सुरक्षित नही होते उसके वास्ते
"प्यार" की पैनी धार पर
कसौटी उसकी होती है
खरी उतरी तो ठीक
वर्ना अनगिनत उँगलियों का शिकार होती है..........
हर सुबह, हर मोड़
कटघरे-सी उसके आगे चलती है
प्रश्नों के जाल मे फँसे रहना
उसकी नियति होती है!
पर १६ कि उम्र,
हर हाल मे बसंत-सी आती है
बलखाती हवाएं
उस लड़की को बेबाक बना जाती है!
सारी रुकावटों से परे
उड़ान-ही-उड़ान होती है
सूरज से होड़ लेने की क्षमताएं
समुद्र की लहरों सी उठती चली जाती है
सुन्दरता सर चढ़ कर बोलती है
नजाकत रोने मे भी नज़र आती है!
यह वह मोड़ है
जहाँ वह दोराहे पर खड़ी होती है
आगे बढ़ते ही
या तो मिसाल बनती है
या- एक चर्चित कहानी बन कर रह जाती है!
शिक्षित होना कोई बड़ी बात नही
मोहक जाल मे फँस कर
वो आज भी कुर्बान होती है
"लड़की ही माँ होती है"
जैसे वाक्यों का कोई मूल्य नहीं होता -
माँ, बेटी, बहन, पत्नी से पहले
वह सिर्फ एक लड़की ही होती है....

18 comments:

shama said...

Aur ye ladkee budhape tak manme samaye rahtee hai...zamana use na jane kyon kuchalne pe amada hota hai?

ρяєєтii said...

ek ladki ke har pahlu ko sarthak karti rahna...ILu...!

मनोज कुमार said...

इस रचना को पढ़ने के बाद जो पहला शब्द निकबा वह था उफ!
इस कविता मे इक्कीसवीं सदी में भी सामंती रूढ़ियों वाले पुरु-प्रधान समाज में नारी के लिए यथास्थिति से मुक्त होने की तड़प है। साथ ही मुक्त होने का तनाव मूल्यों का संकट पैदा करता प्रतीत होता है। समस्या के विभिन्न पक्षों पर गंभीरती से विचार करते हुए यह कविता कहीं न कहीं यह आभास भी कराती है कि अब भी कुछ नहीं बदल रहा है।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

लडकी के अस्तित्व को मिटाने वाले उसे केअल तमाम सम्बोधनों और पदवियों में ही तो कैद करके रखना चाहते हैं.

Anonymous said...

pita ke naam se,fir pati ke naam se jani jati hai
khud ka vzud dhudhti hai har kahin
apne bl par bna le ek mukam agr
kitni nzron ke gheron se gher li jati hai
sare niyam,sb qayde hain to bs uske liye
tnik virodh,vidroh uska,daagh uske
apne daman me lga jati hai .....
aur use mafee nhi milti

maa,bahin, beti hi hoti to kyon itni asurkshit hoti
kyon ek chhoti si bchchi tk....
sb kuchh to samet leti hain aap apni ek hi kavita me ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

rashmi ji,

aapne is kavita ke madhyam se ladki ki ahmiyat ko bakhoobi likha hai....bahut sundar kriti hai...badhai

M VERMA said...

माँ, बेटी, बहन, पत्नी से पहले
वह सिर्फ एक लड़की ही होती है....
तमाम तमगो मे सजा दिया गया है लडकी को
पर उसे लडकी ही रहने दो ----

Randhir Singh Suman said...

nice

रश्मि प्रभा... said...

shukriyaa

surinder said...

माँ, बेटी, बहन, पत्नी से पहले
वह सिर्फ एक लड़की ही होती है....
Rashmi Ji,
Namaste, Ladkiyon ke sangharsh ki gatha aur uska satik vernan hai ..shayad isi ka naam zindagi hai..
Surinder

दिगम्बर नासवा said...

माँ, बेटी, बहन, पत्नी से पहले
वह सिर्फ एक लड़की ही होती है....

VAAH ....... KAMAAL ki baat .... nihshabd hun padhne ke baad ...

vandana gupta said...

माँ, बेटी, बहन, पत्नी से पहले
वह सिर्फ एक लड़की ही होती है....

sach........ladki ko sirf ladki hi rahne diya jaye.......banna to beshak sab hai magar sabse pahle aur baad mein bhi wo ek ladki hi hai aur jahan use wo hi bane nhi rahne dena chahta.bahut hi sarthak rachna.

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

वाकई में इन रिश्तो की साथ ही जीवन का आधार होती है ये......

Yogesh Verma Swapn said...

antim panktiyan bejod.

Dr.R.Ramkumar said...

मुझे यह पंक्तियां छू गईं
Tuesday, November 17, 2009
एक लड़की





एक लड़की -
हिदायतों, समझौतों का प्रतिरूप होती है
हँसने, बोलने, चलने मे
उसकी संरचना साथ होती है....
रातें, सुनसान रास्ते
सुरक्षित नही होते उसके वास्ते
"प्यार" की पैनी धार पर
कसौटी उसकी होती है

और ये भी

सारी रुकावटों से परे
उड़ान-ही-उड़ान होती है
सूरज से होड़ लेने की क्षमताएं
समुद्र की लहरों सी उठती चली जाती है
सुन्दरता सर चढ़ कर बोलती है
नजाकत रोने मे भी नज़र आती है!

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और अनुभूतियों की गहराई...आपने शब्दों को कई कई ऐंठनों में बुनी है यह कविता ‘लड़की’ और इस बुनावट में आपके रेशे भी छूट गए हैं... बेहद बढ़िया तादात्म्य..
रश्मिप्रभा जी......

Dr.R.Ramkumar said...

मुझे यह पंक्तियां छू गईं

एक लड़की -
हिदायतों, समझौतों का प्रतिरूप होती है
हँसने, बोलने, चलने मे
उसकी संरचना साथ होती है....
रातें, सुनसान रास्ते
सुरक्षित नही होते उसके वास्ते
"प्यार" की पैनी धार पर
कसौटी उसकी होती है

और ये भी

सारी रुकावटों से परे
उड़ान-ही-उड़ान होती है
सूरज से होड़ लेने की क्षमताएं
समुद्र की लहरों सी उठती चली जाती है
सुन्दरता सर चढ़ कर बोलती है
नजाकत रोने मे भी नज़र आती है!

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और अनुभूतियों की गहराई...आपने शब्दों को कई कई ऐंठनों में बुनी है यह कविता ‘लड़की’ और इस बुनावट में आपके रेशे भी छूट गए हैं... बेहद बढ़िया तादात्म्य..
रश्मिप्रभा जी......

Anonymous said...

dil ko chu jane vali kavita hai....

डॉ. जेन्नी शबनम said...

rashmi ji,
ek ladki ko samaj ke har kasauti par puri zindgi khara utarna hota hai, chahe kitne bhi samjhaute kar le samaj ke aaropo se bari nahi ho paati. jahan samjhaute aa gaye to fir manchaahi zindgi kahan? mere vichaar se praakritik roop se shaaririk bhinnata ladki kee har mazburi ki wajah hai, jisse wo puri zindgi bhayaakraant rahti hai.
saargarbhit soch aur rachna keliye badhai.