Monday, November 16, 2009

थम जा ज़रा...

दिल औ दामन फटने लगे,
इतना तो ना दर्द दे,
तार पिरो ले रूह के,
रुक जा ज़रा,सी लेने दे,
या इलाही,दुआ करती हूँ,
थम जा ज़रा,दम लेने दे...

7 comments:

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

वाह! कमाल,वाह! वाह!
ये ज़ुरूर सच ही होगा!

रश्मि प्रभा... said...

khuda ki ibadat mein uthe jo haath
khuda kee nemat hogi dard kam hoga

Unknown said...

kaleje me sui si chubhodi shamaaji !

aap ki lekhni dard ke lafz yon likhti hai ki dil me tees si uth jaati hai

वन्दना अवस्थी दुबे said...

शब्दातीत........

Dr. Amarjeet Kaunke said...

bahut khubsurat kavita...mubark

दिगम्बर नासवा said...

तार पिरो ले रूह के,
रुक जा ज़रा,सी लेने दे....

रूह के तारों से सी कर दर्द कम नही होगा .....
बहुत अच्छी रचना है ...... कमाल की .........

ρяєєтii said...

ruh se ruh ki baat,
ibadat main uthe haath...
kya kahu main....bas kabul ho Dua aapki...