पलकें नम थी मेरी,
घास पे शबनम की तरह,
तब्बसुम लब पे सजा था,
किसी मरियम की तरह.
वो मुझे छोड गया ,
संगे राह समझ.
मै उसके साथ चला था,
हरदम, हमकदम की तरह.
वफ़ा मेरी कभी
रास न आई उसको,
वो ज़ुल्म करता रहा,
मुझ पे बेरहम की तरह.
फ़रिस्ता मुझको समझ के ,
वो आज़माता रहा,
मैं तो कमज़ोर सा इंसान
था आदम की तरह.
ख्वाब जो देके गया ,
वो बहुत हंसी है मगर,
तमाम उम्र कटी मेरी
शबे गम की तरह.
6 comments:
ख्वाब जो देके गया ,
वो बहुत हंसी है मगर,
तमाम उम्र कटी मेरी
शबे गम की तरह.
wah
Harek sher apne aapme mukammal hai...aur ek dujeka saath juda bhi hai..!Waah!
तमाम उम्र कटी शबे गम की तरह
खुद को पाया आईने में शबनम की तरह
वाह!
बदले अल्फ़ाज़ मगर सच उतना ही सच्चा है अभी भी.ध्न्यवाद मेरे अल्फ़ाज़ों को नया रंग देने के लिये!
बहुत ही गहरी बात है रचना मे!!!!!
kya..baat hai..."happy blogging"...link dekhiyga
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