पीछे छूट चली,
वो राह वो सहेली,
गुफ्तगू, वो ठिठोली,
पीछे छूट चली...
ना जाने कब मिली,
रात इक लम्बी अंधेरी,
रिश्तों की भीड़ उमड़ी,
पीछे छूट चली...
धुआँ पहेन चली गयी,
'शमा' एक जली हुई,
होके बेहद अकेली,
पीछे छूट चली...
ये कारवाँ उसका नही,
कोई उसका अपना नही,
अनजान बस्ती,बूटा पत्ती,
बिछड़ गयी कबकी,
वो राह,वो सहेली...
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9 comments:
गजब का भाव लिये हुये है रचना ...............
धुआँ पहेन चली गयी,
'शमा' एक जली हुई,
होके बेहद अकेली,
पीछे छूट चली...
इन पंक्तियो मे सिर्फ दर्द का एहसास है ..........जिन्दगी बस यू ही चली गयी ..............क्या बात है !
अतिसुन्दर
बधाई
धुआँ पहेन चली गयी,
'शमा' एक जली हुई,
अच्छी अभिव्यक्ति सुन्दर भाव
akelepan ka dard kitni sundarta se abhivyakt hua hai shubh kamnayen --prem
umda......bahut umda !
Vastav men karvan men bhi log akele bhi hote hain...bahut sunder hai..
बेहतरीन
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विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
बहुत सुन्दर रचना. बहुत अलग सा लिखतीं हैं आप. दिल को छू लेने वाला.....और हां मेरा आग्रह मान लेने के लिये धन्यवाद. अब मैं नियमित अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकूंगी.
धुआँ पहेन चली गयी,
'शमा' एक जली हुई,
होके बेहद अकेली,
पीछे छूट चली...
बहुत खूब...
धुआं-धुआं होती रही शमा
बस जलने की वजह ढूंढ न पायी.....
'अदा'
धुआं पहन चली गई
शमा एक जली हुई बहुत सुंदर बधाई प्रेम
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