शमा जी ,
आप के Blogg की 100 वीं पोस्ट है, मैं नही जानता के आप को पसन्द आयेगा कि नहीं. मैं ये liberty ले रहा हूं आप ने "कविता" पर मुझे coauther का right दिया है, तो इतनी liberty मैं ले हई सकता हूं. उम्मीद है कलाम आपको और आप के Blog के पाठकों को पसंद आयेगा.
हाथ में इबारतें,लकीरें थीं,
सावांरीं मेहनत से तो वो तकदीरें थी।
जानिबे मंज़िल-ए-झूंठ ,मुझे भी जाना था,
पाँव में सच की मगर जंज़ीरें थीं।
मैं तो समझा था फूल ,बरसेंगे,
उनके हाथों में मगर शमशीरें थीं।
खुदा समझ के रहे सज़दे में ताउम्र जिनके,
गौर से देखा तो , वो झूंठ की ताबीरे॑ थीं।
पिरोया दर्द के धागे से तमाम लफ़्ज़ों को,
मेरी ग़ज़लें मेरे ज़ख़्मों की तहरीरें थीं।
7 comments:
बधाइयाँ जी बधाइयाँ
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विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
बेहद खूबसूरत रचना ..! खुशकिस्मती 'कविता ' ब्लॉग की ,के, ऐसे अशार नसीब हुए ..!
shama
bahut hi shandar rachna badhai.....
aayeeye dekhiye court k faisle par ek cartoon....
is samaz ka kya hoga.....
shama ji....
apne moolywan vicharo se mujhe avgat karayen.....
bahut hi shandar rachna badhai.....
bahut hi shandar rachna....
badhai......
aayeeye dekhiye court k faisle par ek cartoon....
is samaz ka kya hoga.....
shama ji....
apne moolywan vicharo se mujhe avgat karayen.....
पिरोया दर्द के धागे से तमाम लफ़्ज़ों को,
मेरी ग़ज़लें मेरे ज़ख़्मों की तहरीरें थीं।
शब्द क्या हैं, गुलदस्ता है।
बेहतरीन।
'KAVITA" के सभी "प्रबुद्ध पारखियो" का तहे-दिल से शुक्रिया.
वाह ! बहुत अच्छी रचना !
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