कृष्ण पक्षके के स्याह अंधेरे
बने रहनुमा हमारे,
कई राज़ डरावने,
आ गए सामने, बन नज़ारे,
बंद चश्म खोल गए,
सचके साक्षात्कार हो गए,
हम उनके शुक्रगुजार बन गए...
बेहतर हैं यही साये,
जिसमे हम हो अकेले,
ना रहें ग़लत मुगालते,
मेहेरबानी, ये करम
बड़ी शिद्दतसे वही कर गए,
चाहे अनजानेमे किए,
हम आगाह तो हो गए....
जो नही थे माँगे हमने,
दिए खुदही उन्होंने वादे,
वादा फरोशी हुई उन्हीसे,
बर्बादीके जश्न खूब मने,
ज़ोर शोरसे हमारे आंगनमे...
इल्ज़ाम सहे हमीने...
ऐसेही नसीब थे हमारे....
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
स्याह अंधेरों में भी भावोद्वेलन से उपजे चित्र बिलकुल साफ़ हैं.बधाई !
स्याह अंधेरों में भी भावोद्वेलन से उपजे चित्र बिलकुल साफ़ हैं.बधाई !
सुन्दर रचना. बधाई.
कृष्ण पक्षके के स्याह अंधेरे
बने रहनुमा हमारे,
bahut khoob
kavita jaisee kavita
lekin kavita se kuchh zyada kavita ............
kavita ke aage ki kavita !
is abhinav rachnaa ke liye abhinandan aapka !
जो नही थे माँगे हमने,
दिए खुदही उन्होंने वादे,
वादा फरोशी हुई उन्हीसे,
बर्बादीके जश्न खूब मने,
ज़ोर शोरसे हमारे आंगनमे...
इल्ज़ाम सहे हमीने...
ऐसेही नसीब थे हमारे....
bahut khoobsurat baaten...jo .....
Post a Comment