अपनी उम्मीदें दफनाई
नींव तुम्हारे घरकी बनायी......
अपने लिए सपने कोई ,
कभी देखे नहीं ....
गर पलक झपकी भी,
पलकों ने झालर बुनी
ख्वाब आँखों के थे तुम्हारी......
मेरी तमन्ना कहाँ थी ?
गर पूरी नही हुई,
उसमे मेरी खता कहाँ थी?
क्यों इल्ज़ामे बेवफाई?
जब हर वफ़ा निभायी!...
मैं तो नींद गहरी ,
सोयी कभी? कभी नही!
दूर रहे हर आँधी,
ऐसी की निगेहबानी!
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6 comments:
very nice.....
सच बात है, हम बहुत सी बातो को नजरंदाज कर दूसरे में ही कमिया ढूंढते है,
अच्छी कविता है और अन्दर तक का दर्द उजागर करती है !
लाजवाब
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नये प्रकार के ब्लैक होल की खोज संभावित
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
kya khoob likhti hain bhav man men uttar jaate hain badhai svikaar karen --prem
क्यों इल्ज़ामे बेवफाई?
जब हर वफ़ा निभायी!...
ईमानदरी से किया गया एक सवाल जिसका जवाब हम सभी ने देना है...
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