Wednesday, July 22, 2009

माँ..!

मिलेगी कोई गोद यूँ,
जहाँ सर रख लूँ?
माँ! मै थक गयी हूँ!
कहाँ सर रख दूँ?

तीनो जहाँ ना चाहूँ..
रहूँ, तो रहूँ,
बन भिकारन रहूँ...
तेरीही गोद चाहूँ...

ना छुडाना हाथ यूँ,
तुझबिन क्या करुँ?
अभी एक क़दम भी
चल ना पायी हूँ !

दर बदर भटकी है तू,
मै खूब जानती हूँ,
तेरी भी खोयी राहेँ,
पर मेरी तो रहनुमा तू!

( 'माँ, प्यारी माँ!' , इस संस्मरण पर मालिका के से..)

6 comments:

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

भावनात्मक अभिव्यक्ति,

मां का साया है नसीब जिन्हे,
दर्द दुनिया का क्या बिगाडेगा.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

कितनी भावपूर्ण, मार्मिक अभिव्यक्ति....बहुत ही सुन्दर. बधाई.

M VERMA said...

बहुत सुन्दर
माँ! मै थक गयी हूँ!
कहाँ सर रख दूँ?
===
माँ तो एक कायनात है ओर छोर नही है
वाह

शोभना चौरे said...

mamta ki chanv ka sukh aseem hota hai .
aapne jo kvita rchhi hai sarthk hai.

शोभना चौरे said...

mamta ki chanv ka sukh aseem hota hai .
aapne jo kvita rchhi hai sarthk hai.

Neeraj Kumar said...

माँ पर लिखी यह कविता मर्म-स्पर्शी और सच्ची अनुभूति को प्रदर्शितकर रही है...

"पर मेरी तो रहनुमा तू!"


आपने बताया था आपकी माताजी बहुत बीमार थीं...आशा करता हूँ अब स्वस्थ होंगी...