Saturday, July 18, 2009

मन का सच!


खता मेरी नहीं के सच मै ने जाना,
कुफ़्र मेरा तो ये बेबाक ज़ुबानी है।

मैं, तू, हों या सिकन्दरे आलम,
जहाँ में हर शह आनी जानी है।

ना रख मरहम,मेरे ज़ख्मों पे यूं बेदर्दी से,
तमाम इन में मेरे शौक की निशानी है।

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11 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

वाह !

ओम आर्य said...

ना रख मरहम,मेरे ज़ख्मों पे यूं बेदर्दी से,
तमाम इन में मेरे शौक की निशानी है।

bahut hee bhawpurn pankyiyaan jo dil ke bahut hi karib lagi ........atisundar

डिम्पल मल्होत्रा said...

ना रख मरहम,मेरे ज़ख्मों पे यूं बेदर्दी से,
तमाम इन में मेरे शौक की निशानी है।....yeh zakham umar bhar dard ka ahsaas karaate hai....or umar bharsath nibhate hai...

shama said...

Leoji,behad pasand aayi ye rachna...chand panktiya..aur umr bhar kaa dard....
Mai out of stn hun..kisee dost ka net hai..aapke blog pe nahee pahunch paa rahi hun! Kshma karen !

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

आप सब का शुक्रिया मेरे दर्द के साथ Identify करने के लिये.मेहरबानी से "कविता", और "सच में" के प्रति ऐसे ही स्नेह बनाये रखें.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत सुन्दर.....बधाई.

स्वप्न मञ्जूषा said...

खता मेरी नहीं के सच मै ने जाना,
कुफ़्र मेरा तो ये बेबाक ज़ुबानी है।
kyaa baat hai,
apna bhi kuch yahi haal hai..

ना रख मरहम,मेरे ज़ख्मों पे यूं बेदर्दी से,
तमाम इन में मेरे शौक की निशानी है।
waah..waah..
bahut khoob..

aur ye rahin meri do laina..

ग़मों के जंगल में, बहार आ गयी है,
नई कोपलें सर उठाने लगीं हैं

M VERMA said...

बहुत सुन्दर

only shayyiri... said...

ik ummid hai jo dil mein makin ho gayi hai
dekhte-dekhte yeh duniya hasin ho gayi hai
......................
......................
tujhse bichada tha jahan tere kahe par ik din
meri parchai juda mujhse vahin ho gayi hai

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

"आप आये भी नही,मुझको बुलाया भी नही,
मै कैसे मान लूं यादों में मेरी ताबे इश्क बाकी है."

@only shayyiri आप का शुक्रिया. कभी ’सच मे’ पर भी तशरीफ़ नुमा होने की ज़हमत करें.

Neeraj Kumar said...

बहुत ही सुन्दर...
प्रभावशाली अभिव्यक्ति...